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१६. ११. १२] हिन्दी अनुवाद
३६३ घत्ता-पिताके द्वारा कहे गये तपको कैलास पर्वतपर जाकर करना चाहिए, जिसके कारण अत्यन्त सन्तापकारी संसारके प्रति तृष्णा क्षीण होती है ।।९।।
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यह कहकर कामको मारनेवाले उपशमरूपी लक्ष्मीके धारक और प्रसन्न कुमार, जिसकी गुहाओंमें वराह विचरण करते हैं और जो शवरोंकी शोभासे युक्त है ऐसे वनमें चले गये। उन्होंने कैलास पर्वतपर जिनेश्वरके दर्शन किये और परमेश्वर ऋषभकी स्तुति की-“हे वृषभ वृषभध्वज, आपकी जय हो। देवोंके मुकुटोंसे ललितचरण आपकी जय हो। परम अक्षयपदके कारणस्वरूप आपकी जय हो। मोहरूपी महावृक्षका निवारण करनेवाले हे जिन आपकी जय हो। सुखमें वास करनेवाले, दुराशाका निवारण करनेवाले आपकी जय हो। चन्द्रमाके समान श्वेत छत्रवाले आपकी जय हो।" फिर पांच परमेष्ठियोंको नमस्कार कर, पांच मुट्ठी केशलोंच कर, पांच महामुनियोंके पांच महाव्रत लेकर, पांच आस्रवके द्वारोंको रोककर, पांच इन्द्रियोंके प्रमादोंको छोड़कर, कामदेवके पांच बाणोंको त्यागकर, पांच आचारश्रेष्ठोंको पाकर, दस प्रकारके धर्मोको धारण कर
पत्ता-मनरूपी तीरको दृढ़ गुण ( गुण डोरी ) में रखकर मोक्षके सम्मुख प्रेषित किया। इस प्रकार अरहन्त ऋषभके सन्त पुत्रोंने आत्माको चारित्रसे विभूषित किया ॥१०॥
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तब दूत राजा भरतके घर आया और बोला-“हे राजन् सुनो, शीलके सागर तुम्हारे भाई, हे देव आज ही मुनि हो गये हैं, एक बाहुबलि ही दुर्मति है, न तो वह तुम्हें प्रणाम करता है और न तप करता है।" यह सुनकर पुरोहितने भट, सामन्त और मन्त्रियोंके लिए उपयुक्त यह कहा, उसके ( बाहुबलिके ) पास कोश, देश, पदभक्त,. परिजन, सुन्दर अनुरक्त अन्तःपुर, कुल, छल-बल, सामर्थ्य, पवित्रता, निखिलजनोंका अनुराग, यशकीर्तन, विनय, विचारशील बुधसंगम, पौरुष, बुद्धि, ऋद्धि, देवोद्यम, गज, राजा, जंगम, महीधर, रथ, करभ और तुरंगम हैं। जबतक वह अर्थशास्त्रका अनुसरण नहीं करता और जबतक सैकड़ों सहायकोंको नहीं बनाता, जबतक दुष्टोंकी संगति और क्षात्रधर्मके निर्मूलनके मार्गमें नहीं लगता।
पत्ता-जबतक वह धनुष हाथमें नहीं लेता, तरकस युगलको नहीं बांधता और भाल तथा कान तक निमज्जित होनेवाली डोरपर तीरका सन्धान नहीं करता ॥११॥
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