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९. २८.५] हिन्दी अनुवाद
२१५ तोरणमालाओंसे युक्त स्तूप हैं। फिर स्फटिकमय विशाल साल ( परकोटा ), मानुषोत्तर पर्वतके समान विशाल, जिसका द्वार कल्पवासी देवोंके द्वारा रक्षित है। वहाँसे लेकर शुद्धाकाशके समान स्फटिक मणियोंसे बनी हुई सोलह दीवालें हैं।
___ धत्ता-उनके ऊपर वैदूर्यमणियोंसे निर्मित मण्डपका मध्यभाग है, सोलह पद स्थापनाओंके द्वारा जिसका पीठ अत्यन्त शोभित है ॥२६॥
२७ उसके ऊपर चारों दिशाओं में कल्याण और धनमें श्रेष्ठ तथा श्री और धर्मचक्रको धारण करनेवाले यक्ष और इन्द्र थे। उसके ऊपर एक और हिरण्यपीठ था, अपनी शोभाको प्रकट करता हुआ वह आठ ध्वजोंसे घिरा हुआ। चक्रवाक, हाथी, बैल, कमल, शोभा वस्त्र और सिंह, मयूर और पुष्पमालाओंसे चिह्नित ध्वजोंसे जो शोभित है। फिर भी तीन किनारोंसे ( एकके ऊपर एक) पीठ निर्मित है। उसके ऊपर सुन्दर सिंहासन है। स्वर्ण और चांदीसे निर्मित और समन्तभद्रमणिसे जड़ा हुआ। जिसकी यष्टि (हाथ टेकनेकी लकड़ी ) मरकत मणियोंसे निर्मित स्फटिक मणियोंको गांठोंसे शोभित है। उसके ऊपर तीन छत्र उठे हुए थे जो नाभेयके चरितके समान सुन्दर थे। दिग्गजोंके समान सफेद किरण-समूहोंवाले वे चन्द्रबिम्बकी तरह शोभित हैं। भामण्डल मानो सूर्यका मण्डल है। जो मानो राहुसे अत्यन्त भयभीत होकर दुदर्शनीयोंकी दृष्टिका नाश करनेवाले परमेष्ठीको शरणमें आ गया। अथवा जो लाल फूलोंके गुच्छोंसे प्रसाधित, तथा जिनके मनसे निकले हुए रागके समान शोभित है। जिसमें प्रसन्न पक्षियुग्म हैं, ऐसे पल्लवोंसे शोभित क्रीड़ा करते हुए अशोक वक्षके समान । जैसे-जैसे देवके लिए दुन्दुभि बजती है, वैसे-वैसे मानो धर्मरूपी समुद्र गरजता है।
घत्ता-मानो वह गम्भीर दुन्दुभिके स्वरसे इस प्रकार घोषित करता है कि यदि संसारसे मुक्त होना चाहते हो तो त्रिभुवननाथको प्रणाम करो ॥२७॥
२८ अविरल कुन्द, कुटक, मन्दार, कमल, भ्रमरसहित सिन्दुवार, कणिकार ( कनेर ) और चंपकपुष्प जैसे-जैसे आकाशसे गिरते हैं वैसे-वैसे कामदेवके हाथसे तीर गिरने लगे। नव स्वर्णमय दण्डोंवाले, यक्षोंके करतलोंके आन्दोलनसे चपल सफेद सुविशिष्ट और प्रशंसित चमर स्वर्णबन्धनमें
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