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१०.६.२० ]
हिन्दी अनुवाद
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जय हो । गणपतियों (गणधरों ) को जन्म देनेवाले आपकी जय हो, ब्रह्मचर्यकी साधना करनेवाले ब्रह्म आपकी जय हो । सिद्धान्तवादी ब्रह्मा, धरतीका उद्धार करनेवाले आदिवराह, जिनके गर्भके समय स्वर्णवृष्टि हुई है, ऐसे तथा दुर्नयका हनन करनेवाले हे हिरण्यगर्भं, आपकी जय हो । चार परम अनन्त चतुष्टयोंको शोभावाले अज्ञानका अपहरण करनेवाले हे सूर्य, आपकी जय हो । पशुयज्ञोंका नाश करनेवाले, ऋषियोंके द्वारा प्रशंसनीय, अहिंसाधर्मंका कथन करनेवाले यज्ञपुरुष ! आपकी जय हो । त्रिभुवनके माधवेश, माधव और मधुविशेषको दूषित करनेवाले मधुसूदन ! आपकी जय हो । लोकका नियोजन करनेवाले परमहंस, गोवर्द्धन, केशव और परमहंस आपकी जय हो । विश्व में वह केशव है जो रागवाला है, तुम विरागीके केशवत्व कैसे हो सकता है ? विश्व में शव कौन है, शव वे हैं जो तुम्हारा उपहास करते हैं । जो जड़ और पापशरीर हैं वे रौरव नरकमें रहते हैं । हे कासव ! तुम्हारी जय हो, तुममें मृतकका आचार ( शवविधि ) कैसा ? जिसके चित्तमें निरन्तर निरोध है |
घत्ता - हे गगन, अग्नि, चन्द्र, रवि, मेघ, मही, मारुत, सलिल आपकी जय हो । सबके कलियुग मल और पापको प्रक्षालित करनेवाले अष्टांग महेश्वर, आपकी जय हो ||५||
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शुद्ध, बुद्ध, शुद्धोदन, सुगत और कुमार्गका नाश करनेवाले आपकी जय हो । वैकुण्ठ, विष्णु, दामोदर, परवादियों के संस्कारोंको नष्ट करनेवाले आपकी जय हो । हे देव, आपके जो-जो नाम हैं वे सब सफल नाम हैं । इन्द्र, चन्द्र और शेषनाग किसने तुम्हारे नामोंका अन्त पाया ? मति वैभवसे रहित और अव्युत्पन्न हम जैसे लोगोंके द्वारा तुम्हारी स्तुति कैसे हो सकती है ? तब कंचुकीधर्मं और आयुधों के रक्षकोंने एक ही क्षणमें भरतसे यह बात कही, "हे राजन्, आप एकछत्र धरतीका उपभोग करें । परमेष्ठी ऋषभको सचराचर पदार्थोंको जाननेवाला अनन्त केवलज्ञान उत्पन्न हुआ है। रानीको खिले हुए मुखवाला पुत्र हुआ है, और आयुधशालामें श्रेष्ठ चक्ररत्न उत्पन्न हुआ है । हे आदरणीय, आप पुण्यवान् हैं जिसके पिता अरहन्त सन्त हैं ।" तब राजा भरत और दूसरे मनुष्योंने अपने सिरोंसे हाथ लगाते हुए जिनवरको प्रणाम किया । फिर उसने सोचा, कि पहले मैं क्या देखूं - दृप्त शत्रुओं का नाश करनेवाला चक्र देखूं या पुत्रका मुख । या मध्यस्थ स्वच्छ परिग्रहशून्य शुद्ध - अन्तरंग मुनिको वन्दना करूँ । धर्मसे ही देवत्व, कलत्र, पुत्र और शत्रुओं का नाश करनेवाला अस्त्र उत्पन्न होता है । धर्मसे ही पृथ्वीका राज्य होता है । इसलिए पहले धर्मकार्यं करना चाहिए । तब उसने गम्भीर नादसे शत्रुओंका संहार करनेवाली आनन्दभेरी बजवा दी । . घत्ता — गज, तुरंगों, नरवरों, रथध्वज और चमरोंसे घिरा हुआ, और वैतालिकोंके द्वारा किये गये कलकलसे मुखर राजा भरत चला ||६||
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