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११. १०.८ ]
हिन्दी अनुवाद
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घत्ता - जिस प्रकार मनुष्योंको तीस भोगभूमियाँ निश्चित रूपसे बतायी गयी हैं, उसी प्रकार उससे आधी अर्थात् पन्द्रह कर्मभूमियां होती हैं ॥८॥
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पन्द्रह कर्मभूमियोंके मनुष्य, आर्य और म्लेच्छ होते हैं, जो अपनी इच्छा के अनुसार रसका भोग करते हैं । म्लेच्छ चीन, हूण, पारस, बबर, भाषा रहित, निर्वस्त्र और विवेकहीन । आर्य लोग ऋद्धि सहित और ऋद्धि रहित होते हैं । इनमें ऋद्धिसे परिपूर्ण जिनेश्वर और चक्रवर्ती होते हैं । वासुदेव, बलदेव, महाबल, चारण और विद्याधर आर्यकुलमें होते हैं । ऋद्धियोंसे रहित मनुष्य नाना प्रकार के होते हैं, जो लिपि और देशी भाषा बोलनेवाले और पण्डित होते हैं । जिन ( अर्थात् अन्तिम तीर्थंकर महावीर ) बहत्तर वर्षं जीवित रहते हैं, हजारसे अधिक वर्षं नारायण जीते हैं, उससे अधिकतर वर्ष बलभद्रका जीना कहा गया है। उससे सात सौ वर्षं अधिक चक्रवर्ती निश्चित रूपसे जीते हैं । जिन, नारायण और बलभद्रकी परम आयु चौरासी लाख वर्षं पूर्व होती है । कर्मभूमिमें उत्पन्न हुआ स्थिरकर मनुष्य एक पूर्वकोटि सामान्य जीवन जीता है । कोई मनुष्य पक्ष, मास, छह माह और एक वर्षं तथा कुछ दिन जीते हैं। शरीर के पसीने आदिसे उत्पन्न होनेवाले जो सम्मूच्र्छन जीव होते हैं, वे जल्दी मर जाते हैं। कुछ शरीर लेकर गर्भमें गल जाते हैं, दूसरे कुछ दिन जीवित रहकर मर जाते हैं। दूसरे नृसिंह ( नरश्रेष्ठ ) सवा पांच सौ धनुष ऊँचे होते हैं, निकृष्ट रूपसे सात हाथ, चार हाथ, तीन हाथ और दो हाथ भी होती है । इससे भी छोटे कद मनुष्य होते हैं, अत्यन्त लघु, बौने और कुबड़े ।
धत्ता-सांतवें नरकके विषम जीव सीधे मनुष्ययोनि में उत्पन्न नहीं होते । जिस प्रकार ये, उसी प्रकार वायुकायिक और अग्निकायिक जीव भी सीधे मनुष्ययोनिमें जन्म नहीं लेते ||९||
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कोई तापस असह्य निष्ठाके कारण ज्योतिष और व्यन्तर भवनोंमें उत्पन्न होते हैं । आहिंडक, परिव्राजक, ब्रह्म स्वर्गंमें देव होते हैं और आजीवक सहस्रार स्वर्ग में उत्पन्न होते हैं । व्रत धारण करनेवाले तियंच भी वहीं जाते हैं । सम्यक्त्वकी आराधना करनेमें तत्पर मनुष्य श्रावक व्रतोंके फलसे सोलहवां स्वर्गं प्राप्त करता है और दुःखसे विश्राम पाता है, लेकिन उसके ऊपर मुनिव्रतों के बिना कोई भी अहमिन्द्रकी श्रीका भोग नहीं कर सकता । अपने चित्तमें शत्रु और मित्रके प्रति समता भाव धारण करनेवाले संयम और शुद्ध चारित्र्य और जिनलिंगसे, व्रतोंका भार धारण करनेवाले अजन्मा, ग्रैवेयक स्वर्गमें देव होते हैं, सम्यक्त्वसे प्रशस्त निर्ग्रन्थोंकी उत्पत्ति
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