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१२. ३.२२ ]
हिन्दी अनुवाद
२७७
अतिगर्वित किससे कर नहीं मांगा, किस-किसने गवं नहीं छोड़ा ? भुजदण्डोंके प्रचण्ड विक्रम और मदवाले उसके द्वारा छह खण्ड धरतीमण्डलके लिए लाखों गम्भीर तूयं बजवा दिये गये, दुर्दर्शनीय रक्षक आहतमद हो उठे । युद्ध करनेवाले देवोंके शरीर थरथर काँप उठे। उनके कान बहरे हो गये । असुरेन्द्रों और नागेन्द्रोंकी प्रियाएं और विपुल पाताललोक काँप उठे । पहाड़ और धरतीतल टूट-फूट गये। नदियोंके चमकते हुए जल मुड़ गये । स्थिर भाववाले देवोंको शंका उत्पन्न हो गयी । शब्दों से आहत सूर्य और चन्द्रमा डोल उठे ।
धत्ता - त्रिजगका विमर्दन करनेवाले उस तूर्य शब्दके साथ दुर्गोंको ध्वस्त करनेवाला, शत्रुमण्डलको सिद्ध करनेवाला, साधनोंसे युक्त चतुरंग सैन्य भी जा मिला ||२||
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जिसने हल-सब्बल ग्रहण किया है, जो स्वर्णकुन्तलोंसे उज्ज्वल है, जो चन्दनसे सुरभित है, सरस केशरसे आरक्त है, प्रलयकालके सूर्यके समान भयंकर है, जिसमें तुरु तुरिय और काहल वाद्य बज रहे हैं, सुभटों का कोलाहल हो रहा है, हुंकार शब्द छोड़ा जा रहा है, तलवारकी धारें चमक रही हैं, जो तूणीर ( तरकस ) बाँधे हुए हैं, जो शत्रुमें अत्यन्त आसक्त है, जिसने कवच धारण कर रखे हैं, जिसने अपने स्वामीके लिए प्रणाम किया है, जिसने धनुषको मोड़ रखा है, जिसने आभूषण पहन रखे हैं, जो जंपाण धारण किये हुए हैं, जो विमानोंको प्रेरित कर रही है, जिसमें यक्ष और देव चल रहे हैं, जिसमें चंचल चमर चल रहे हैं, जिसने अनेक राजाओंको क्षुब्ध किया है, जिसने प्रस्थानका उत्सव किया है, जो स्त्रियोंसे सुन्दर है, किंकिणियोंसे मुखर है, जिसमें सारथियोंके द्वारा रथ हाँके जा रहे हैं, जिसमें छत्रोंसे आकाश आच्छादित है, जिसमें चारणोंके द्वारा गुणोंका गान किया जा रहा है, जिसमें मणिकंकणोंका दान किया जा रहा है, पवनसे ध्वजपट उड़ रहे हैं, जिसमें गजघटा गिरिवरके समान भारी है, जिसने मदके गौरवको ग्रहण किया है, जिसमें घण्टोंका शब्द हो रहा है, जिसमें भ्रमर घूम रहे हैं, जिसमें ढक्काकी ध्वनि हो रही है, जिसमें नागों के फणामणि चूर-चूर हो गये हैं, जो कालकी लीलाको धारण करता है, जिसमें देवरूपी नट नचाये जाते हैं, जिसमें श्रेष्ठ अश्वोंकी घटा चंचल है, जिसमें अत्यधिक धूलिरज है, जिसमें मणिमय हार व्याप्त हैं, ऐसा राजसैन्य चल पड़ा ।
घत्ता - जिसने शत्रुवधुओंको विरह उत्पन्न किया है और जो विश्वयशसे भरित है, ऐसे राजा के चलते हो सैन्य दौड़ा और श्रेष्ठ रथों, गजों, भटों और अश्वोंके द्वारा वह कहीं भी नहीं
समा सका || ३ ||
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