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१४. १२.१०]
हिन्दी अनुवाद जीत लेनेपर राजा घननाद गरजा, राजाने घननादको भी बुलाया। अपने सिरोंके चूड़ामणियोंसे भूमिका भाग छूते हुए, दूरसे पैरोंमें नमस्कार करते हुए, हिरण्य वस्तु-समूहका दान करते हुए आवतं और किरात राजाओंने राजासे भेंट की। इस प्रकार म्लेच्छराजको साधकर हर्षसे उछलता हुआ वह सिन्धु नदीके किनारे-किनारे फिरसे चला। जब राजा हिमवन्तके निकट पहुँचा तब आदरणीय सिन्धु देवी आयी। वह नदी नहीं, दिव्य स्वरूप धारण करनेवाली देवी थी, जो परमेश्वरी सिन्धकूटमें निवास करतो थी। राजाको देखकर उसे भद्रासनपर बैठाकर कलश हाथमें लिये हुए प्रशस्त
घत्ता-जलचर ध्वजवाली सिन्धु देवीने अभिषेक कर दोनों हाथ जोड़कर उसकी स्तुति की । और उस भरताधिपके लिए नवपुष्पोंपर स्थित मधुकरोंवाली पुष्पमाला अर्पित की ॥१२॥
इस प्रकार वेसठ महापुरुषों के गुणों और अलंकारोंवाले इस महापुराणमें महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित एवं महामव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्यमें
आवर्त-किलात प्रसाधन नामका चौदहवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ ॥१४॥
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