________________
१५.७.८]
हिन्दी अनुवाद हाथ है, जो मानो वैद्यकी तरह कई औषधियोंवाला है। जो मानो हरि सेवित (देवेन्द्र और सिंह) जिनवर हो । हाथियोंके दांतोंके मूसलोंसे आहत शरीर जो मानो कोई युद्ध करनेवाला महासुभट हो । देव, दानव और मनुष्योंकी पत्नियोंके लिए प्राणप्रिय जो मानो जिनवरके शासनका स्तम्भ स्थित हो।
पत्ता-उस महीधरका तट चारों ओरसे मनुष्योंके द्वारा लिखे गये अक्षरों और विगत राजाओंके हजारों नामोंसे आच्छादित था ।।५।।
जहां दिखाई देता है वहाँ अक्षर सहित है, वह पर्वत मोक्षकी तरह मुनिगणके द्वारा पूज्य है। बहुगुणी भरत अपने मनमें सोचता है कि मेरा नाम कहां लिखा जाये ? दूसरे-दूसरे राजाओंके द्वारा भोगी गयी इस धूतं धरतीके द्वारा कौन-कौन राजा अतिक्रमित ( त्यक्त ) नहीं हुए ? तब भी मोहान्ध मेरी मति मूछित होती है ? केवल एक परमात्मा धन्य हैं जो धरती छोड़कर प्रवजित हुए। अनेक राजाओंके हाथोंसे खिलायी गयी इस लक्ष्मीरूपी वेश्यासे मैं प्रवंचित किया गया। सप्तांग राज्यभारसे यह आहत है, मदरूपी मदिरासे मत्त और मूर्छाको प्राप्त है। धाराओंमें गिरते लीलारूपी जलोंवाले सैकडों मंगल घटोंसे अभिसिंचित है, जो चंचल चमरोंके द्वारा हवा की जाती हुई जीवित रहती है, जो छत्रोंसे आच्छादित होनेके कारण नहीं देख पाती, तलवारके जलकी कर्कशताको महत्त्व देती है । अंकुशके साथ टेढ़ी चलती है, कुलध्वजोंके श्रेष्ठ पदोंकी जो चंचलताको धारण करती है, और जो गुण छोड़कर दूसरेके पास जाती है। शिक्षित भी पुरुष इस धरतीमें आसक्त होकर नरकभूमिमें जाता है। बड़े-बड़े लोग भी शीघ्र किस प्रकार गिर पड़ते हैं जिस प्रकार हथिनीमें अनुरक्त हाथी गड्ढे में गिर पड़ता है।
घत्ता-पिताके द्वारा बहुत समय तक भोगी गयी, यह फिर पुत्रके साथ सुखपूर्वक रहती है। यह धरती वेश्याके समान किसीके भी साथ नहीं जाती ॥६॥
जहां एक नखके लिए भी स्थान नहीं है, वहां यहां मैं अपना नाम कहाँ लिखू ? मेरे-जैसे राजाको कोन गिनेगा, जो-जो राजा जा चुके हैं, उन्हें पुरोहित कहता है ? जिस रास्ते परमेश्वर महाजन (ऋषभ ) गये हैं, जगमें उस मार्गका अनुसरण किसीने नहीं किया। दूसरेको नष्ट कर जिस प्रकार धरती ग्रहण की जाती है हे राजन्, उसी प्रकार नाम भी मिटाया जाता है। तब बालहंसके समान लीलागतिवाले तथा लज्जारूपी मलसे मलिन स्वामी राजाने किसी राजाकी अवधारणा अपने मन में की और किसी दूसरे राजाका नाम उतार दिया (मिटा दिया ), तथा हाथके कागणी मणिकी रेखासे प्रदीप्त अपना नाम पहाड़पर चढ़वा दिया कि "मैं कामका क्षय
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org