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१४.१०.१६ ]
हिन्दी अनुवाद
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तब म्लेच्छराजने नागों से कहा- 'जिसमें गजवर गरज रहे हैं, और तरुणीजन द्वारा स्वर्ण चामर ढोरे जा रहे हैं, ऐसी इस शत्रुसेनाको मार डालो।" तब नागोंने स्कन्धावारके ऊपर विद्यासे दिन-रात वर्षा शुरू कर दी। पशुकुल त्रस्त होता है, घन-कुल गरजता है और बरसता है, पीला और श्यामल इन्द्रधनुष शोभित है । मही निखर उठी है, हरी घास बढ़ रही है, प्रोषितपतिकाओं का मन पियके लिए सन्तप्त हो रहा है, बान खिले हुए कदम्ब वृक्षोंसे आरक्त दिखाई देते हैं, गीला-गीला होकर जन-मनमें खेदको प्राप्त होता है, बिजली तड़तड़ पड़ती है, सिंह गरजता है, वृक्ष कड़कड़ करके टूटते हैं, पहाड़ विघटित होता है । जल बहता है, फैलता है, घाटीमें घूमता है । वेगसे दोड़ता है, नदी पूरसे भरती है, जल और थल सब कुछ जलमय हो गया । मार्ग-अमार्ग कुछ भी नहीं मालूम पड़ता । कामदेव अपने तीरका अच्छी तरह सन्धान करता है और विरहसे पीड़ित पथिकको विद्ध करता है ।
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धत्ता - पानी निम्नगति है, बिजली भी जलाती है, देवेन्द्रका धनुष निर्गुण और कुटिल है । पावस हतमन दुर्जनके समान है कि जो राजाके ऊपर बरस रहा है ॥९॥
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जिसमें जलकी धाराओंकी रेलपेलसे वृक्ष आहत है और पशु चले गये हैं, जिसमें नवमेघों की ध्वनिसे अपने चन्द्रकलाप फैलाकर मयूर नाच रहे हैं, ऐसी वर्षा ऋतु आ गयी दिखाई देती है, जैसे वह सेनारूपी महिलापर आसक्त हो । तलवारके जलपर गिरकर पानी फिर दौड़ता है, और योद्धाओंके भुजदण्डों के सम्मुख आता है, वह वहाँ भी नहीं ठहरता और वहांसे जाना चाहता है, लोभसे ग्रस्त कौन किससे लगता है, वह भ्रमरोंके पंखोंसे दलित होकर वधुओंके मुखोंपर लिखित पत्रावलीको कुछ-कुछ धोता है । शत्रुकी गृहिणी के मण्डनको कौन सहन करता है, वह हथिनियों के सिका सिन्दूर ढोर देता है । "हे ध्वजदण्ड, तुम्हें मैंने बड़ा किया है इस समय दूसरोंके ध्वजचिह्नोंसे शोभित हो, मेरा सर (स्वर) अब प्राणहारी ( प्राण धारण करनेवाला / प्राण हरण करनेवाला ) सर ( सर/तीर) के समान है ।” मानो मेघ गरजते हुए इस प्रकार कह रहा है । वह मैगल गजोंके मदजलको धोता है, मानो दुष्ट मेघोंके लिए दान अच्छा नहीं लगता । चक्रवाक सहित रथ ठहर गये हैं मानो सरोवर हों, पानी में कौन-कौन मनुष्य नहीं तिरते । राजाका पुरोहित तब कहता है- "हे देव, लोक उपसर्गसे अवरुद्ध है, इसका कोई प्रतिविधान करना चाहिए, पानीका निवारण करनेवाले चर्मरत्नकी चिन्ता की जाये ।" तब राजाने सेनापतिका मुख देखा, वह भी शीघ्र आदेश समझ गया ।
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घत्ता - अपने मनमें विचारकर, जनोंके भारको धारण करनेवाले चर्मरत्नको उसने तलभाग में डाल दिया । और ऊपर जगके गौरव, चन्द्रमाको जीतनेवाले धवल आतपत्र स्थापित कर दिया || १०||
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