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१४.७.६ ]
हिन्दी अनुवाद
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है । उठते हुए प्रतिशब्दोंसे गम्भीर गजघटाके घण्टोंकी टंकारों, रथोंसे छोड़ी गयी चीत्कारों, दोड़ते हुए हुंकारोंके द्वारा मानो महीधरका विवरमार्ग फूट पड़ता है और कोलाहलसे त्रिभुवन जैसे ध्वस्त होना चाहता है । इन्द्र-वरुण वैश्रवण अफसोस करते हैं, धरती किसी प्रकार भारको सहन करती है । समुद्र किसी प्रकार धरतीपर नहीं बहता, मन्दराचल किसी प्रकार अपने स्थानसे नहीं डिगता, चन्द्रमा और सूर्य दोनों आकाशमें काँपते हैं । नीला असहाय कैलास भी हिलने लगता है । इस प्रकार चलता हुआ सैन्य दिखाई देता है, वह आधी गुफाके धरतीतलपर पहुँच जाता है ।
घत्ता- - शत्रुके मदका नाश करनेवाले राजाके परिवारके पथमें जानेपर नाग, शंख, कौलिय और कर्कोट जातिके नागों को मनमें शंका हो गयी और उन्होंने अपना मुख टेढ़ा कर लिया ||५||
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वहाँ निवास करनेवाले किनर, गरुड़, भूत, किंपुरुष, महोरग, यक्ष, राक्षस और व्यन्तर कोन कोन देवता प्रभुके वशमें नहीं हुए। उस समय पर्वतके मध्यमें, जिनमें सुन्दर कारण्ड ( हंस ) और भेरुण्ड लीला में रत हैं, जलोंके आवतमें मीनावलियां क्रीड़ा कर रही हैं, जो तटमें लगे हुए फेनसमूहसे उग्र हैं, ऐसी समुन्मग्ना और निमग्ना नामवाली पर्वतराजके मध्यसे निकलनेवालीं, जलकी लहरावलियोंसे वक्र दो नदियाँ राजाके रास्ते के बीच आकर इस प्रकार स्थित हो गयीं, मानो जैसे महानागराजकी दो नागिनें हों जो मानो मत्स्योंसे उत्कट सिन्धु नदीके लिए जा रही हों । तब अभग्न दुर्गोंसे निस्तार दिलानेवाले, कुशल स्थपतिरत्नके द्वारा निर्मित सेतुबन्धसे नदियोंके श्रेष्ठ तीरों को बांधकर, नगर में सेनाका संचार जानकर, घाटियोंके द्वारा मान्य पानीको लाँघकर श्रेष्ठ उस पार के आधारको पार कर
धत्ता - जिसमें देव रमण करते हैं ऐसी पहाड़की गुफामें से निकलता हुआ अलंकार सहित सैन्य इस प्रकार शोभित हो रहा था, जैसे मुँहसे निकलता हुआ महायोग्य सुकविका काव्य हो ॥६॥
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भरतके निकलनेपर नगाड़ोंकी ध्वनियोंसे म्लेच्छ मण्डल काँप उठा । शत्रुसेनाके दलन के लिए वीरोंमें कोलाहल होने लगा, युद्धकी भिड़न्त चाही जाने लगी । चिग्घाड़ते हुए और चलाये जाते हुए हाथियोंके पैरोंके भूरिभार के दबावसे उत्पन्न भूकम्पसे नमित नागराजोंके द्वारा मुक्त फूत्कार शब्दोंसे जो भयंकर हो उठा है। हिनहिनाते हुए और चलाये गये घोड़ोंके तीखे खुरोंसे खोदी गयी धरतीसे उठी हुई धूलसे नष्ट होती हुई देवांगनाओंके वस्त्र और चित्र-विचित्र हो रहे हैं ।
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