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११. १९.६] हिन्दी अनुवाद
२५३ १७ एकके द्वारा दूसरा सेलसे पीड़ित किया गया, एकके द्वारा दूसरा भुशुण्डिसे ठेला गया। एकके द्वारा दूसरा त्रिशूलसे छेद दिया गया। एकके द्वारा दूसरा चक्रसे काट दिया गया। एकके द्वारा दूसरा आगमें फेंक दिया गया, एकके द्वारा दूसरा पशुके समान काट दिया गया। एकके द्वारा दूसरा खुरपेसे खण्डित कर दिया गया, एकके द्वारा दूसरा विदीर्ण करके छोड़ दिया गया है। एकके द्वारा दूसरा तलवारसे विभक्त कर दिया गया और उसीका मांस उसे खानेको दिया गया कि लो-लो, इस समय क्या देखते हो, तुमने बेचारे पशुओंको मारकर क्यों खाया था ? तप्त लोहा, तांबा, और सीसा तपाया गया, और एक दूसरेके लिए मद्यके रूपमें दिखाया कि पियो पियो, तूं अरहन्तको नहीं जानता, तुम्हारा कोल सुन्दर व्याख्यान देता है।
___घत्ता-धर्महीन मति खोटे मार्गपर जाते हुए तुमने अपना निवारण नहीं किया। और जिससे तुमने रति बांधकर दूसरीकी स्त्रीका रमण किया है ।।१८।।
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अग्निवर्णा, संतप्त अत्यन्त लाल लोहेसे बनी हुई । मानो यह तुममें अनुरक्त हो। गजराजके कुम्भके समान पीन स्तनोंवाली मानिनीका आलिंगन करो, नवयौवना परबाला मानकर इस कटीली शाल्मलीका आलिंगन करो। क्षेत्रसे उत्पन्न मानसिक शरीरसे उत्पन्न असुरोंसे प्रेरित और अन्यके द्वारा उन्नमित पाँच प्रकारका दुख पापोंके समूहसे गृहीत नारकीयोंको होता है। वहां न नारी है, न पुरुष है, और न सुन्दर शरीरावयव है, नंगा, निन्दनीय और अशेष नपुंसक । प्रथम भूमिमें नारकीयका शरीर सात धनुष तीन हाथ और छह अंगुलका होता है। दूसरी भूमिमें पन्द्रह धनुष छह हाथ और बारह अंगुल होता है।
___घत्ता-अरतिजनक युद्धमें जन्मको धारण करनेवाली देहसे प्रहार करते हुए विक्रियाके द्वारा नारकीयका शरीर भारी हो जाता है।॥१८॥
तीसरी भूमिमें इकतीस धनुष एक हाथ और दो अंगुल ऊंचा शरीर होता है । चौथी भूमिमें बासठ धनुष और दो हाथ ऊँचा। पांचवीं भूमिमें पच्चीस धनुष ऊंचा शरीर......."छठी भूमिमें जिनेन्द्र भगवान्के द्वारा कथित दो सौ पचास धनुष ऊंचाई होती है। दुःखके समूहसे दुर्गम सातवीं भूमिमें शरीरकी ऊंचाई पांच सौ धनुष होती है। दुष्कृतोंसे अजेय पहले नरकमें एक सागर प्रमाण
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