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१०. १०.४]
हिन्दी अनुवाद
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क्षमादि जिसके अंग हैं। चौरासी लाख योनियाँ जिसके रोम हैं ऐसे उसके लिए दुष्ट गोपति समूह उत्पन्न हो गया । जो कामधेनु है, जिसने सुधामकी सेवा की है, जिसने मोहरूपी रस्सी तोड़कर फेंक दी है । और जो दुर्धर व्रतभारके घुराग्रको धारण कर, जो प्रवर्तित नहीं हुआ ऐसे तीर्थं पथपर चलकर और पार कर ज्ञानके तीरपर पहुँचा है, और जो धीर अशोक वृक्षके नीचे विश्राम कर रहा है, जिसने संसारके अलंघ्य पथको पार कर लिया है, जो धवल, धवलसमूहमें महाआदरणीय है उसके प्रति प्रणतभाव प्रदर्शित करते हुए भरतराज अपने कोठेमें बैठ गया ।
घत्ता - हाथोंकी अंजली जोड़ते हुए, सिरसे प्रणाम करते हुए तथा भक्ति और हर्षसे प्रफुल्लमुख भरत संसार दुःखसे विरक्त भव्य जनोंको देखकर उनमें जा मिला ||८||
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तब निकलती हुई धीर दिव्य ध्वनिसे नाग, नर, अमरको सन्तुष्ट करनेवाले जिनवर जीव अजीव नामसे भेदवाले तत्वोंका कथन करते हैं-सभव और अभव ( जन्मा और अजन्मा ) दो प्रकार होते हैं । इनमें सभी जीव अपने कर्मके अनुसार परिणमन करते हैं। चौरासी लाख योनियों में परिभ्रमण करते हैं। एक दूसरेके शरीरसे अनुराग करते हैं । विकलेन्द्रिय और सकलेन्द्रिय अनेक होते हैं । एकेन्द्रियके पांच भेद होते हैं, जो कारण रचना करनेमें समर्थ होता है उसे पर्याप्त कहते हैं । परमेश्वर जिनने उसे छह प्रकारका कहा है । पर्याप्तिके पूर्व होनेका काल एक अन्तर्मुहूर्त है । जिस प्रकार नारकियोंमें उसी प्रकार देवों में ( जघन्य आयुके रूपमें ) जीव दस हजार वर्षं जीवित रहता है। उत्कृष्ट आयु तैंतीस सागर प्रमाण है और मनुष्योंमें तीन पल्य बराबर आयु होती है । एकेन्द्रिय जीवोंके चार पर्याप्तियां हैं ओर विकलेन्द्रिय जीवोंके पांच इन्द्रियाँ कही जाती हैं । असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवोंके पाँच पर्याप्तियां होती हैं और संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवोंके छह । और इनके द्वारा जिनका कथन नहीं होता, वे अपर्याप्तक जीवके रूपमें जाने जाते हैं । पर्याप्तक जीवके लिए एक क्षणका समय लगता है । विश्व में सभी पर्याप्तियोंमें एक अन्तर्मुहूर्तं काल लगता है ।
धत्ता-तियंच और मनुष्योंका औदारिक शरीर होता है, देव और नारकीयोंका वैक्रियक शरीर । आहारक शरीर, तेजस ओर कार्मण शरीर सभीके होते हैं ||९||
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तियंच दो प्रकार के होते हैं- - त्रस और स्थावर । स्थावर पाँच प्रकारके होते हैं- पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक । जो क्रमशः मसूर, जलकी बूँद, सूइयों का समूह और उड़ती हुई ध्वजके आकारके होते हैं। तोरण, वृक्षवेदिका,
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