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११.६.५]
हिन्दी अनुवाद
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हरिक्षेत्र कुछ अधिक आठ हजार चार सौ इक्कीस, एक बटे उन्नीस योजन प्रकट किया गया है; रम्यक क्षेत्रका विस्तार भी इतना ही है । निषध पर्वतका विस्तार सोलह हजार आठ सौ बयालीस, दो बटे उन्नीस योजन है । उसकी ऊँचाई चार सौ योजन कही गयी है । नील कुलाचलका भी विस्तार और ऊंचाई इतनी ही है, उसका कोई निवारण नहीं कर सकता। दोनों (अर्थात् निषध और नील कुलाचल ) मिलकर विदेह क्षेत्रके विस्तारकी रचना करते हैं, जो तैंतीस हजार छह सौ चौरासी, चार बटा उन्नीस योजन है । और भी उत्तरकुरु तथा दक्षिणकुरुका विस्तार ग्यारह हजार आठ सौ बयालीस योजन कहा गया है, निश्चय ही यह मान कम नहीं होता । घत्ता - भोगभूमि से सन्तुष्ट रहनेवाले ये छह क्षेत्र हैं । इस जम्बूद्वीपमें कर्मभूमि से विभूषित तीन क्षेत्र हैं ||४||
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हिमवत् पर्वतपर पद्म नामका सरोवर है, उसका परिविस्तार पांच सौ योजन है, एक हजार योजन उसको लम्बाई कही जाती है । और दस योजन गहराई । इस पद्म सरोवरका आगममें जितना विस्तार कहा गया है, शिखरी कुलाचलपर स्थित महापुण्डरीक सरोवरका भी यही विस्तार हैं । और श्रेष्ठ महाहिमवान् पर्वत है; उससे दुगुना । उसके ऊपर पद्म सरोवरसे तीन गुना महापद्म नामका सरोवर है, यह मैंने कहा । निषध पर्वत पर स्थित तिगिच्छ सरोवर महापद्म नाम सरोवरसे दुगुना होता है। स्निग्ध नील नगराजपर स्थित केशरी सरोवर भी उतना ही बड़ा है । रमणीय रुक्मी पर्वतपर स्थित पुण्डरीक सरोवर उससे आधा है ।
घत्ता - श्री, ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी नामकी पुण्य क्रीड़ा करनेवाली देवियाँ सरोवरोंमें रहती हैं ||५|
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सुनो - पद्म, महापद्म, तिगिच्छ, केशरी, पुण्डरीक और महापुण्डरीक स्वच्छ सरोवर हैं । उनसे अपने जलसे पहाड़ी गुफाओं और घाटियोंको आपूरित करनेवाली महानदियाँ निकली हैंगंगा, सिन्धु, लहरोंवाली रोहित, मन्थरगामिनी रोहितास्या, हरि, हरिकान्ता, सीता, सीतोदा, महाजवाली और नरकान्ता । स्वर्णंकूला और रूप्यकूला तथा मत्स्योंसे भरपूर रक्ता और
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