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३. ११.८ ]
हिन्दी अनुवाद
घत्ता - धरती, जिनेन्द्र भगवान् के जन्मपर हर्षं धारण करती हुईं, अपना नव तृणांकुरोंका ऊँचा रोमांच दिखाती है, और अनेक रसभावोंसे युक्त, वृक्षोंके चलदलवाले हाथोंवाली वह भावसे नृत्य करती है ||९||
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महिषों, मेषों, अश्वों, उलूकों, हंसों, मोरों, कुररों, कीरों, शरभों, करभों, गजों, बैलों, चमकती हुई आंखोंवाले रीछों, मत्स्यों, सारंगों, सिंहों, वृक्षों, पहाड़ों और मेघोंपर सवार होकर अग्नि, महाभयंकर यम, नैऋत्य, वरुण ( समुद्रेश ), मारुत, कुबेर और शंकाहीन ईशान आदि देव आये । मध्यमें क्षीण, मुग्धा पूर्ण चन्द-मुखी, नव- कमलोंके समान आँखोंवाली, स्तनोंपर हिलते हारोंवाली, प्रसरणशील विकारोंसे युक्त, हंसकी तरह चलनेवाली, आकाशसे उतरती हुई सरस नृत्य करती हुईं सुन्दर रमणियों तथा बजते हुए वाद्यों, क्रीड़ा करते हुए वामनों, बाहुओंसे शब्द करते आते हुए मल्लों, बहुविधविलासों और मंगल शब्दोंके साथ, इस प्रकार नाना प्रकारके देव चले |
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घत्ता - अत्यन्त दुर्ग्राह्य अयोध्या पहुँचकर तीन बार उसकी प्रदक्षिणा कर नाग, दिनकर, चन्द्र और सुरेन्द्र ने कहा, "हे नाभेय कुमार ! आपकी जय हो |” ||१०||
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जिसके हिम सदृश शिखर आकाशके अग्रभागको छूते हैं ऐसे नाभिराजाके घरमें प्रवेश कर नृपश्रेष्ठ प्रिय बातें कर माताके हाथमें मायावी बालक देकर, देवोंके द्वारा सम्माननीय इन्द्राणी उसे बाहर ले गयी । इन्द्रने उन परमश्रेष्ठको देखा मानो नवसूयंने कमलसरोवरको देखा हो । अज्ञानरूपी अन्धकारके समूहको नष्ट करनेवाले वे ऐसे लगते हैं, मानो धर्मका वृक्ष अंकुरित हो उठा हो; मानो शिवसुखरूपी स्वर्णरस बांध दिया गया हो, मानो यश पुरुषके रूपमें रख दिया गया हो, मानो सम्पूर्ण कलाधर (पूर्णचन्द्र ) उग आया हो, मानो लक्षणों का समूह एक जगह
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