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५. २२. १३] हिन्दी अनुवाद
११५ देनेवाले कुलकर चन्द्र ऋषभने रक्षा करवायी। वर्णों के चार मार्गका उपदेश किया। दण्डविधानसे अशेष दोषको नष्ट कर दिया। उन त्रिभुवन राजाको धरतीका राजत्व प्राप्त था, मनुष्योंकी प्रभुता प्राप्त करने में कौन-सी बात थी। इस प्रकार कर्मभूमिको सम्पदाको दिखाते हुए, स्वर्ण और धनकी धाराओंको बरसाते हुए जब बीस लाख पूर्व वर्ष बीत गये तब जगनाथको नाभिराजा अमरसमूह कच्छ-महाकच्छ राजाओंके द्वारा राजपट्ट बांधा गया।
पत्ता-सिंहासन और नृप-शासनमें आसीन परमेश्वर, जिन्हें बहुत-से हलधर कर देते हैं, जो जय और लक्ष्मीको सखी धरतीका पालन करते हैं ॥१॥
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जिनके निर्मल चरणोंमें विषधर, विद्याधर और मनुष्य प्रणत होते हैं, और जिनपर पवित्र देवस्त्रियां अपने करपल्लवोंसे चमर ढोरती हैं, ऐसे वह ऋषभ धरतीका पालन करते हैं । भोगभूमिके समाप्त होनेपर भूखसे कम्पित शरीर समस्त जन अपने करतल उठाकर, जिस कारणसे घरपर इक्षुरस पीनेके लिए आये थे, उससे प्रभुका वंश इक्ष्वाकुवंश हो गया। सोमप्रभुको कुरुका राणा कहा गया इसलिए वह कुरुवंशका प्रधान हो गया। हरिको हरिकान्त कहकर उन्हें प्रशंसनीय हरिवंशका प्रथम पुरुष बना दिया गया। कश्यपको मघवा कहकर पुकारा गया और इस प्रकार उग्रवंशके मलको प्रकाशित किया गया। बौर अकम्पनको श्रीधर कहा गया, नाथवंशमें उसे पहला जानो। चौदहवें कुलकरके प्रियपुत्र, और मरुदेवीके मन बोर नेत्रोंको आनन्द देनेवाले, नागराजके शिरोमणिसे आहत है पदनूपुर जिनके, ऐसे आदरणीय वे कलत्र, पुत्र और अन्तःपुरके साथ तथा पूर्वकथित नरेश्वरकुलोंसे शोभित राज्य करने लगे।
पत्ता-आभासे भास्वर ऋषभेश्वर लक्ष्मीसे योग्य भरतके साथ प्रजाका पालन करते हैं उसे न्यायका मार्ग दिखाते हैं ॥२२॥
इस प्रकार ब्रेसठ पुरुषोंके गुणों और अलंकारवाले इस महापुराणमें महाकवि पुष्पदन्त द्वारा रचित एवं महामव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्यका आदिदेव महाराज
पट्टबन्ध नामका पाँचवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ ।।५।।
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