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७.४.७] हिन्दी अनुवाद
१३१ गरुड़, यक्ष, राक्षस, विद्याधर, भूत-पिशाच, नाग, चन्द्र, दिनकर, शत्रुओंके कुलरूपी काननके लिए कालानलके समान इन्द्र, प्रतीन्द्र और अहमिन्द्र, पन्द्रह क्षेत्रोंमें उत्पन्न जिनवर, कुलकर, चक्रवर्ती, हलधर और नारायण इसे धारण करते हैं। शरीरको कान्तिसे भास्वर तथा प्रवर आयुधोंमें प्रवीण देवासुर भी इस जीवको धारण करते हैं । यदि यह जीव समुद्रके भीतर, अनुचर ( सैनिक ), घोड़ों, हाथी और रथोंके व्यूहमें सरोवर-नदी, पहाड़-घाटी-कर्कश गुफामें, दुष्प्रवेश्य वज्र और लोहेके पंजरमें प्रवेश करता है या चाहे अत्यधिक तमवाली धरतीके मल या पातालमें जाकर छिप जाता है तब भी वह कालके द्वारा उसी प्रकार निकाल लिया जाता है, जिस प्रकार भृकुटियोंसे कराल सिंहके द्वारा हरिण।
पत्ता-यह अशरणभावना समझकर, मन-वचन और कायको रोककर जिसने चारित्र्य स्वीकार नहीं किया वह मनुष्यरूपमें वायुसे प्रेरित होकर व्यर्थ भ्रमण करता है ॥२॥
मित्र और स्वजनका संयोग होकर वियोग होता है, जगमें यह जीव अकेला ही परिभ्रमण करता है, अपने कमसे विनीत होकर । एक जीव जड़ जन्मान्ध नपुंसक दुर्गत दुष्ट दुर्बुद्धि और दुराशय, कुमनुष्यत्वमें होकर दुर्दर्शनीय होता है, एक जीव चण्ड और चाण्डाल होता है । एक वनके भीतर धनुर्धर भील होता है, एक मणिमय विमानमें देव होता है, अपनेको पुष्यहीन मानता है और इन्द्रके वैभवको देखकर क्षीण होता है। एक जीव आकाशमें नभचर और दूसरा स्थलमें स्थलचर । एक बिलमें सांप और जलमें जलचर। एक पशुयोनिमें जन्म लेता है, और दूसरोंके द्वारा खण्डित होकर तथा तलकर एक क्षणमें खा लिया जाता है। एक दुर्भग, दुःसह और दुर्गति, नरकविवरमें नारकियोंके द्वारा मारा जाता है। अकेला ही तरता है, अकेला ही वैतरणी पार करता है, और ज्वलित-प्रज्वलित धरतीपर विचरण करता है ?
पत्ता-जीव अकेला ही रतिसुखका भ्रमर बनकर दुर्दम, विश्वकीचडमें पड़ता है। जो अकेला ही तपसे संतप्त और ज्ञानसे भाषित होकर परमात्मा बनता है ॥३॥
इस प्रकार एकत्व भावनाको सुनकर अपने मनको प्रगाढ़ रूपसे नियमित करना चाहिए। बेचारा जीव अकेला है और समस्त लोकसे भिन्न है। भिन्न परमाणुओंके द्वारा बांधा जाता है और गर्भ में जो पिण्ड बंधता है, वह भिन्न है। जीव भिन्न है, और पापकर्ममल भिन्न है, पुण्य अलग है, और उसका फल अलग है। अन्यके द्वारा कुलमें स्त्री ले जायी जाती है। कोई दूसरा पुत्ररूपमें उत्पन्न होता है। अपने कार्यमें कृतादर मित्र दूसरा होता है, और स्नेही भाई दूसरा
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