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८.४.११]
हिन्दी अनुवाद
जिसने ऊँचे उठे हुए धवल ध्वजोंकी महिमाको हटा दिया है, दूसरे जन्ममें जिसका प्रभाव विख्यात है, ऐसा श्रेष्ठ हाथियोंके समूहके स्वामीका पर्याणभार, हे प्रियसखी क्या रासभोंके द्वारा ले जाया जा सकता है ? कोई हाथियोंके द्वारा कान और गण्डस्थल खुजाये जानेकी बाधा सहन करता है। कोई सुअरोंके दाढोंसे विदीर्ण होनेकी बाधा सहन करता है, कोई नागमखोंसे चूमा जाने और उनके गलेमें लपटनेको सहन करता है, कोई असह्य डाँस और मच्छरको सहन करता है, कोई कषायोंका पोषण करनेवालो दुर विषयोंको सहन करता है। कोई विवश होकर नग्नत्वको सहन करता है, कोई नित्य निराहार रहना और गिरिदुर्ग में रहना सहन करता है । कोई पावस जलधाराओंको अप्रिय बिजलियोंकी झपटोंको सहन करता है। कोई शीतलकालमें होनेवाली ठण्ड सहन करता है । उष्णकालमें सूर्यके किरण प्रसारको सहन करता है। परलोककी कहानी किसने देखी? कौन इनकी तपस्याको सहन कर सकता है। किसी एकने कहा-मैं यहाँ क्यों मरूं? घर जाकर अपना राज करूँ? किसी एकने कहा-मैं अपने पुत्रको याद करता हूँ, घर जाकर अपनी स्त्रीका आलिंगन करता हूँ। किसी एकने कहा-भ्रमरोंसे चुम्बित और मकरन्दसे प्रतिबिम्बित जलको सरोवरमें प्रवेश कर तबतक पीता हूँ कि जबतक प्यास नहीं जाती।
घत्ता-मानमें श्रेष्ठ एक व्यक्तिने कहा-अपने हाथ ऊपर किये हुए भगवान्को वनमें अकेला किस प्रकार छोड़ दिया जाये ? ॥३॥
चन्द्रमाके क्षीण होनेपर उसका शश (चिह्न) भी क्षीण हो जाता है और चन्द्रमाके बढ़नेपर वह भी बढ़तीके अपने प्रिय पदपर पहुंच जाता है। हम दण्ड सहन करते हैं, वनमें ही रहें। राजाओंका चरित ही भृत्योंके लिए अलंकारस्वरूप है। तरुओंसे गहन विषम और विजनमें परलोकसे रति करनेवाले तुम्हें छोड़कर तथा विविध घरोंवाले अपने उस नगरमें जाकर, भरतका मुख हम किस प्रकार देखेंगे? सबने उसके इस कथनको पूरी तरह स्वीकार कर लिया। सुरोंसे प्रणम्य हैं, चरण जिनके ऐसे तथा कामको जलानेवाले उत्तुंग शरीर मनु ( आदिनाथ ) को वे
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