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९. २४.८ ]
हिन्दी अनुवाद
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कोई लता चम्पक वृक्षको घेर लेती है, ( ठीक भी है) सभी नारियां स्वर्णकी आकांक्षा रखती हैं, चाहती हुई कोई लता अशोक वृक्षसे लग जाती है, और जिस प्रकार स्त्री अशोक ( शोकरहित ) मनुष्यसे रमण करती है, उसी प्रकार रमण करती है । कोई लता जाकर पुन्नाग वृक्षसे लग गयी, और स्फुट रूपसे पुन्नाग ( श्रेष्ठ पुरुष ) की गृहिणी बन गयी । कोई मायंद ( आम्रवृक्ष ) के साथ नहीं लगती मानो वह चन्द्रमा और रोहिणीकी लीलाको धारण करती है ।
धत्ता - कोई देवता शुकके रूपमें पत्तों, दलों और फलके गुच्छोंको अपनी चंचल चोंच से नोचता है, और इस प्रकार अपनी कामनाको पूरी करता है ||२२||
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अपनी इच्छा के अनुसार वेश धारण करनेवाले, तथा जिन्हें कामभाव उत्पन्न हो रहा है, ऐसे देवता जहाँ लतावनोंके लताघरोंमें रमण करते हैं । फिर विशाल प्राकार, स्वर्णसे रचित और कान्तिसे युक्त जो ऐसा लगता था, मानो जिन भगवान् ने अपने व्रतोंका परिकर कस लिया हो । जो काम कटाक्षोंके लिए अप्रवेश्य था, और जो मानो दुखोंका अन्त था । जहाँ चार गोपुर-द्वार बनाये गये थे, जहाँ अनेक मंगल द्रव्य रखे हुए थे । एक सौ आठ संख्या शब्दोंवाले तथा दारिद्र्यका अपहरण करनेवाली नौ निधियां । जहाँ भयंकर वज्र और गदाएँ हाथमें लिये हुए व्यन्तर देव प्रातिहायका काम करने में समर्थ थे । फिर मार्गों के दोनों ओर चारों दिशाओं में दो-दो विशाल नाटकशालाएँ थीं । जो नवरसोंसे युक्त तीन भूमियोंवाली थीं, सुकवियोंके द्वारा कही गयी उक्तियोंके समान । अनेक वाद्योंसे युक्त वेराग्यभूमियां थीं जो मानो स्वामीकी सेवाके लिए आयी थीं ।
घत्ता - मार्गकी दोनों दिशाओं में अपनी-अपनी धूप देनेवाले दो-दो धूपघट स्थित थे जो कभी भी समाप्त नहीं होते थे ||२३|| -
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आकाशमण्डल में नीली घूमरेखा ऐसी दिखाई देती है मानो जिनके कर्मसे काली वह मुक्त देह घूम रही हो । फिर विद्याधरों और देवोंकी स्त्रियाँ जिनमें रमण करती हैं ऐसे चार नन्दन वन रच दिये गये । प्रत्येक वनमें नदी और सरोवर के किनारे हैं, क्रीड़ा पर्वत श्रेष्ठोंपर केलीभवन हैं । चार गोपुर और तीन परकोटोंसे घिरा हुआ तीन मेखलाओंवाला तथा मणियोंसे चमकता हुआ पीठ है । वहाँ अशोकवनके भीतर अशोक हैं, चारों दिशाओंमें वहां प्रतिमाएं हैं । क्रोध, मोह, मद एवं मानसे रहित जो सिंहासन और तीन छत्रोंसे युक्त हैं। जिनकी अनेक देवोंसे पूजा की गयी है,
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