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हिन्दी अनुवाद
१८९ अंजलि बांधे हुए खड़ा हूँ। कोई कहता है-स्वामी, दया कीजिए, एक बार प्रत्युत्तर दे दीजिए। कोई कहता है-मेरे घर आइए, हे स्वामी ! क्या भृत्यकी भक्ति अच्छी नहीं लगती। जिस प्रकार चन्द्रमा नक्षत्र-नक्षत्रमें विचरण करता है, विश्वपति भी घर-घर में प्रवेश करते हुए गृहिणीके गृहप्रांगणमें आते हैं, तब उसने तात या भाईके समान देवको देखा, मनमें सन्तोष धारण करते हुए वह बाहर आया। तातको प्रणाम करते हुए इस प्रकार कहता है-"स्नानघरमें स्नान करिए, धोती-तेल और आसन रख दिया गया है, हे स्वामी ! स्नान कीजिए और शरीरके उपकरण लीजिए सन्दर वस्त्र स्वर्णके आभरण। आसनपटपर बैठिए, और सरस सामग्रीसे यक्त भोजन कीजिए, यह तुम्हारे योग्य है, बुलवाये जानेपर भी, कुछ नहीं बोलते ? हे भुवनबन्धु, अपनेको क्यों सुखाते हैं ?
घत्ता-नगरमें कलकल सुनकर राजा सोमप्रभने स्वर्णदण्ड है हाथमें जिसके, ऐसे अपने द्वारपालसे पूछा ॥४॥
तब प्रतिहारने कहा, "भवका नाश करनेवाले जो लक्ष्मीके द्वारा कटाक्ष करनेपर भी निर्विकार रहते हैं, इन्द्रने सिरसे प्रणाम कर जिन्हें मेरुपर स्थापित किया और स्वयं अभिषेक किया है, जिन्होंने नाना प्रकारके बुद्धिगम्य लोकजीवन कर्म प्रकाशित किये, जिन्होंने तुम्हें और भरतको धरती दी, और स्वयं नयी वृत्ति ( मुनिवृत्ति ) स्वीकार की, ऐसे वह त्रिलोक पितामह आये हैं।" यह सुनकर सोमप्रभ उठा, और श्रेयांसकुमारके साथ निकला। तबतक हाथ आये हुए, मानो दिग्गज हो, सामने आते हुए जिनवरको देखा, मानो वसुधारूपी अंगनाने हाथ फैला दिया हो, मानो आकाशरूपी सरितामें कमलोंके लिए कृताग्रह सूर्य हो, मानो भव-भवका नाश करनेवाला विश्वरूपी भवनका खम्भा हो । स्वामीके स्नेहके भारसे भरकर हाथ जोड़कर उन्हें प्रणाम किया। लब्धप्रशंस सोमप्रभ और श्रेयांसने उनकी प्रदक्षिणा कर, हर्षाश्रुरूपी ओसकणोंसे सिक्त नेत्ररूपी कमलोंसे उन्हें देखा।
पत्ता-अत्यन्त प्रसन्न मुख होकर वह बात करना छोड़ देता है। उनको देखकर वह पूर्वभवके स्नेहको जान लेता है ।।५।।
जिन भगवान्को देखकर कुमार श्रेयांसने लोकश्रेष्ठ अशेष, स्ववासी दशेश श्रीमती और वज्रजंघके जन्मान्तरके अवतारको ज्ञात कर लिया। मुनियोंके लिए जो मुख्य अनन्त पुण्यको
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