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७.१०.४] हिन्दी अनुवाद
१३७ गाय जिस प्रकार चौपाया है और घास चरनेवाली है, उसी प्रकार सुअरनी, हरिनी और रोहिणी (मछली) भी। हा-हा, ब्राह्मणोंके द्वारा वे मरवायी जाती हैं और राजाके लिए राजवृत्ति दरसायी जाती हैं. पितरपक्षमें स्पष्ट देखा जाता है कि द्विज विद्वान मांसखण्ड खाते हैं. अंगार (के दूधसे धोनेपर भी कभी भी सफेद नहीं हो सकता। यह देह जो हिंसाके आरम्भ और दम्भसे लिप्त होती है, क्या पानीसे धोयी जा सकती है ? अन्य-अन्य रंगोंमें यह रंगी जाती है परन्तु परमागमके रसमें यह नहीं भीगती। मूर्ख जिनेन्द्रकी सेवा कैसे पा सकता है, उसे तो उसका सुनना, ग्रहण करना, धारण करना भी अच्छा नहीं लगता।
पत्ता-मायारत (मायावी ) को मानता है, मुनिको अवहेलना करता है, जीव हिंसा स्वीकार करता है, मनुष्य होकर भी पाप कर फिर संसारमें डूबता है ।।८।।
जो यौवन तथा काम-क्रोधसे सन्तप्त भावनाको थोड़ा नियन्त्रित कर वनमें तप करता है वह उस भवनवासी स्वर्ग में जन्म लेता है। और दूसरा उपवन स्थान, तथा ज्योतिष कल्पवास विमानोंमें उत्पन्न हुआ वाहन वैतालिक छत्रधारी वाद्य बजानेवाला भाँड़ आदि होता है। कानोंको सुख देनेवाला नृत्य और गायन करनेवाला असम्यक्वाला होता है। वह भी मरते हुएको चिन्ता करता है, कांपता है, चलता है और खेदको प्राप्त होता है। हाय, कल्पवृक्ष, हाय मानस सरोवर, हाय नीहारके समान घर । हाय अप्सराकुलका मन सम्मोहन करनेवाले, हाय परिजन और प्रतिपक्षका निरोध करनेवाले। इस त्रिबलि बुढ़ापा और सैकड़ों रोगोंके संचयका नाश करनेवाले, हाय दिव्य देह और नव वय । हाय, सहोत्पन्न अलंकारश्रेष्ठ। हाय, मधुर वीणा रववाले गन्धार । हाय, नित्य उज्ज्वल देवांग । हाय, चंचल भ्रमर सहित मन्दारमाला।
____ पत्ता-सम्यक्त्वसे विमुक्त और जिनपदसे चूके हुए व्यक्तिका हृदय शुद्ध नहीं होता, स्वर्ग छोड़ते हुए या प्रलयको प्राप्त हुए किस व्यक्तिका शरीर नहीं जलता ? ॥९॥
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सुन्दर मैले-कुचैले वस्त्रों और अत्यन्त झुकी हुई मालावाले मेरे मृत्युचिह्न ही शरीरसे विरक्त होनेका कारण बन गये हैं, जिनेन्द्रके जन्माभिषेकमें सुमेर पर्वतको धोनेवाले, और धूप
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