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७.१६.७] हिन्दी अनुवाद
१४३ भी ग्रहण नहीं करती। कान सुन्दर और असुन्दर स्वरोंमें समान हो जाते हैं, वे नष्ट राग-द्वेषवाले कर दिये जाते हैं। और गन्धके अविभाजन ( सुगन्ध-दुर्गन्ध आदि ) से नाक भी ( वशमें कर ली जाती है); तीन गुप्तियों ( मन, वचन और काय ) के द्वारा मन, वचन और कायकी दुश्चेष्टाओंको ( वशमें करना चाहिए ); सुचरितको पापसे संरक्षण दिया जाये, क्रोध होनेपर क्षमासे उसे नियमित किया जाये, मृदुतासे अविनय करनेवाले मानको, और सरलचित्तसे मायाभावको, सुपात्रको दान देकर लोभ अथवा सब प्रकारका परिग्रह छोड़कर। दूसरेके गुणोंको याद कर मदके विलासको और स्थिर मनसे होते हुए हर्षको जीतना चाहिए। घोर और वीर तपके आचरणसे दपंको और रसवन्ती स्त्रीके परित्यागसे रागको।
पत्ता-इस प्रकार जिसके आश्रवद्वार बन्द हैं ऐसे मुक्त आहार-विहारवाले जीवको कमका बन्ध नहीं होता, और जो पुराना संचित कम है अपोषित, वह काय-क्लेशके द्वारा नष्ट हो जाता है ॥१४॥
__ मनोमात्रके द्वारा आचरणमें ऐसा क्यों नहीं किया जाता कि शाश्वत सुखवाला संवर हो। "मैं दिगम्बर होता है।" फिर परमेश्वर सच सोचते हैं कि समय अथवा उपायसे जिस प्रकार वृक्षोंके फल पकते हैं, उसी प्रकार सकाम और अकाम निर्जरासे कल्पित पाप नष्ट होता है। स्वभावसे सौम्य शरीरधारियों, बन्धन, विदीरण और ताड़न आदि बातोंको प्राप्त होते हुए, असह्य दुःख भावसे भरे हुए तिर्यंचोंकी अनाम निर्जरा होती है। शिशिरमें आकाशके नीचे निवास करनेवाले, वृक्षोके मूलमें आतापन तपनेवाले, पर्यकासनोंमें स्थित और महीदण्डपर अपनेको निक्षिप्त करनेवाले गोदुह और गजशौंड आसनोंवाले, पक्ष-माह और वर्षके अन्त तक उपवास करनेवाले, देय और आहारको वृत्ति और संख्याकी रचना करनेवाले, वैराग्य प्रधान ऋषि सन्तानोंके द्वारा
घत्ता-श्वाससे चलते हुए मुनिके शरीररूपी धातुविशेष ( मूषा ) में तीन तपज्वालासे तपकर जीवन स्वर्णकी तरह उज्ज्वल और कर्ममलसे मुक्त होकर केवली होकर रह जाता है ॥१५।।
व्रतरूपी वृक्षको विदारित करनेवाले अपने मनरूपी हाथीको साधु कुमार्गमें जानेसे रोकता है और ज्ञानरूपी अंकुशसे उसे वशमें रखता है। एक या दो कोर आहार करनेवाला विविध अवग्रहों और रसोंका परिहार करनेवाले लम्बी दाढ़ी और बालवाले मलधारी, आताम्र और चान्द्रायण तपका आचरण करनेवाले, कायोत्सर्गसे रतिरंगको छोड़नेवाले, घर, पुर और देशके प्रसंगोंसे दूर रहनेवाले, शून्य आवास और मरघटोंको आवास बनानेवाले, स्नेहसे रहित और अनियमित विहार करनेवाले, दंश-मशक, भूख और प्यासको सहन करनेवाले, दुष्टोंके द्वारा
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