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७. २१.१५] हिन्दी अनुवाद
१४९ २० आपकी वचनरूपी किरणोंसे प्रसाधित विश्वकमलके प्रबुद्ध होनेपर, हे देव मिथ्यामत और दुष्टरूपी खद्योत हततेज हो जायेंगे। मोहरूपी ज्वालावलीको हटाइए, और धर्मामृतरूपी मेघोंकी वर्षा कीजिए। पापरूपी वज्रलेपसे लिप्त बूढ़े गरियाल बैलके समान, (भव )-कीचड़में फंसे हुए तथा रंगनटकी तरह नानारूप धारण करनेवाले प्राणियोंका उद्धार कीजिए।" यह कहकर लोकान्तिक देव चले गये। दूसरेके कल्याणकी बुद्धिवाले देवने विचार किया। उस अवसरपर बुधजनोंके द्वारा समर्थित भरत महीश्वरसे अभ्यर्थना की, "पुत्र, पुत्र, लो, अब तुम पृथ्वीका पालन
मैं पांचवीं गति ( मोक्षगति ) का साधन करूंगा।" यह सुनकर कुमार बोला, "हे देवदेव, यह क्या अयुक्त कहते हैं, तुम्हारे खानेसे छोड़े गये आहार में जो सुख है, वह सुख भोजनके विस्तारमें नहीं है; तुम्हारे आसनके निकट बैठनेमें जो सुख है वह सुख सिंहासनपर बैठनेमें नहीं है। तुम्हारे सामने दौड़ते हुए मुझे जो सुख है वह सुख हाथोके कन्धोंपर जाते हुए नहीं है । तुम्हारे पैरोंको छायाने मुझमें जो सुख प्रकट किया है, छत्रको छायासे वह सुख मुझे प्राप्त नहीं है। मन्त्री और महासेनापतिके द्वारा पूज्य तुम्हारे नहीं रहनेपर, हे तात राज्यसे क्या ?"
__ पत्ता-यह जानकर जिनेश्वरने विशेष रूपसे कहा, "यदि तुम्हें राजाका पद अच्छा नहीं लगता तो जबरदस्ती भयंकर युद्ध कर मछलीके द्वारा मछलीकी तरह एक दूसरेको खा जायेंगे ॥२०॥
इसलिए तुम धरतीका पालन करो, न्याय-अन्यायको देखो। राजाके शासनको स्वीकार करो-मेरा तुम्हें यह आदेश है।" यह सुनकर भरत निरुत्तर हो गया। वह विषादसे खिन्न रह गया। सुनन्दाके पुत्र बाहुबलिको धरती विभक्त शुभ पोदन दिया गया। दूसरे-दूसरे पुत्रोंको धनघान्यसे परिपूर्ण दूसरे-दूसरे मण्डल दिये गये। इस बीच राजाओंको प्रेषित किया गया, जो एकसे एक प्रधान थे, छह खण्ड धरतीमें प्रसारित है तेज जिसका, ऐसे राज्याभिषेकमें लग गये। मनुष्योंके हाथों द्वारा डण्डे (वादन-काष्ठ) से आहत, बजते हुए स्वर्ण तूर्यों, गाये जाते हुए धवल मंगल गीतों, नृत्य करते हुए कुब्जों और बौनों, स्त्रियों और मित्रोंके शरीर रोमांचों, होम और दानके प्रारम्भके विस्तारों तथा स्फटिक मणियोंसे निर्मित, निष्कलुष समस्त तीर्थोके जलोंसे भरे हुए कलशोंके साथ 'जय राजाधिराज' कहते हुए सामन्तोंने भरतका अभिषेक किया। और हास्य चन्द्रमा और काशके समान (धवल ) पवित्रतासे बनाये गये वस्त्र उन्हें पहना दिये गये, सूर्य और चन्द्रमाके तेजसे समृद्ध कुण्डल कानोंमें बांध दिये गये; हाथों में कंगन और गलेमें हार पहना दिया गया और सिरपर मधुकरोंके मुखोंसे चुम्बित शेखर । रत्नकिरणोंसे चमकता हुआ कटिसूत्र कमरमें छुरीके
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