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३. २१.१३]
हिन्दी अनुवाद आकाशरूपी नदीमें कमलवन खिला हो मानो धरतीका मोतीमण्डप हो, मानो जिनके स्नानके अन्तमें मन्दाकिनीका श्वेत जलकणसमूह उछल पड़ा हो, और दसों दिशाओंमें व्याप्त दिखाई दे रहा हो। वह शीघ्र अयोध्या नगरीमें पहुँचा, लोक राजाके प्रांगणमें नहीं समा सका। ऐरावतसे उतरकर इन्द्र आया, और उसने माता-पिताको पुत्र दे दिया। ज्ञाननिधि उसने उनसे त्रिभुवनपरिपालनकी विधि संगृहीत की। चूंकि उनसे ( जिनेन्द्रसे) धर्म शोभित है, इसलिए इन्द्रने उन्हें वृषभ कहा।
___घत्ता-जगभारमें समर्थ, पुण्यसे प्रशस्त, और अदीन पुत्रको लेकर सुन्दर स्थानपर बैठे हुए, देवोंसे संस्तुत चरण मा हर्षित होती है ।।२१।।
इस प्रकार त्रिषष्टि पुरुषगुणालंकारवाले महापुराणमें, महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित महामव्य मरत द्वारा अनुमत इस महाकाव्यमें जिनजन्माभिषेक कल्याण नामक
तीसरा परिच्छेद समाप्त हुआ ॥३॥
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