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२. २०.५]
हिन्दी अनुवाद वटवृक्षके तनोंपर झूलती हुई और थोड़ा-थोड़ा मुसकाती हुई यक्षणियोंके द्वारा जहाँ अत्यन्त हास्य रसको धारण करनेवाला वानर देखा जाता है, और जो विकारपूर्वक अपनी दृष्टि शुकपर डालता है, जहाँ सारसीमें अनुरक्त कोई सारस, सरस आवाज करता हुआ स्थित है। जहां तमाल वृक्षोंके अन्धकारकी लक्ष्मीका शत्रु चन्द्रमा शोभित है, जहाँ कोकिल अत्यन्त सुन्दर आवाज करता है, और जो प्रवर आम्र कलिकामें अपनी चोंच (कर ) ले जाता है, महिलाके प्रति कौन मनुष्य चाटुकार नहीं होता। जहां स्त्री दूसरेके पतिसे रमण नहीं करती, जहां धरतीमें कोई बीज नहीं डालता। जहाँ अठारह प्रकारके धान्योंसे विभाजित खेत अपने-आप पक जाते हैं।
घत्ता-जहां धान्य कणोंके भारसे झुके हुए हैं, पशु स्वच्छन्द विचरण करते हैं, और जंगली भैंसाओंके सींगोंके प्रहारसे च्युत ईख-रस भैंसोंके द्वारा पिया जाता है ।।१८।।
___ जहां हाल हीमें भोगभूमि समाप्त हुई है और धरती ऋद्धियोंसे समृद्ध और विशुद्ध है। चिन्तित ( वस्तुओं) को देते हुए भी जो नहीं थकती, मानो जो अपने पूर्व अभ्यासको छोड़ने में असमर्थ है। जहाँ जमीनपर, गुलाबोंके ऊपर सोया जाता है और पग-पगपर कमलकी परागपंकसे लिप्त होना पड़ता है। जहाँ मनुष्योंके द्वारा द्राक्षा रसका पान किया जाता है और कोई अपूर्व फलका भक्षण किया जाता है। जहां पृथिवीमण्डलकी भूमियां मानो राजाओंकी आकांक्षाओंके समान हैं, जहाँ लम्बी-लम्बी परिखाएँ बहती हैं, जो मानो भावी जिनेन्द्रके जन्मके अवसरपर स्नानको प्रारम्भ करनेके लिए अवतरित हुई नाना नदियां हों। प्रचुर माणिक्योंकी किरणोंके प्रभावोंसे वह नगर ऐसा प्रतीत होता है मानो नाना इन्द्रधनुषों और लाल रंगोंवाले सात परकोटोंसे शोभित है।
पत्ता-जो नगर दिनमें सूर्यकान्त मणिकी किरणोंसे अग्निभावको प्राप्त होता है ( जल उठता है ) वही रातमें चन्द्रकान्त मणियोंकी धाराओंसे आहत होकर शान्त हो जाता है ॥१९॥
२० जहाँ पन्नोंके बने परोंमें, पंखोंसे विभूषित, शुक अपनी चोंचसे पहचाना जाता है, इन्द्रनील मणिके घरोंमें, नवकुन्द पुष्पके समान उज्ज्वल दांतोंवाली हँसती हुई श्यामा, आकाशको आलोकित करते हुए स्वच्छ मुक्तामालाके आभरणसे (प्रियके द्वारा ) पहचानी जाती है। स्वर्णनिर्मित मन्दिरमें विचरण करती हुई, सन्ध्यारागको धारण करनेवाली वह हाथके स्पर्शसे कंगनको जानती
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