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पुष्पदन्त - विरचित महापुराण
( हिन्दी अनुवाद )
सिद्धिरूपी वधूके मनका रंजन करनेवाले, अत्यन्त निरंजन ( पापोंसे रहित), विश्वरूपी कमल-सरोवरके सूर्य, "विघ्नोंका नाश करनेवाले, तथा अनुपम मतवाले ऋषभनाथको मैं प्रणाम करता हूँ ।
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जो अच्छी तरह परीक्षित हैं, जिन्होंने पृथ्वी - जलादि पाँच महाभूतोंके विस्तारकी रक्षा की है, जिनका शरीर दिव्य और पांच सौ धनुष ऊँचा है, जिन्होंने शाश्वत पदरूपी ( मोक्ष ) नगरका पथ प्रकट किया है, जिन्होंने परमतोंके एकान्त प्रमाणोंका नाश किया है, जो शुभशील और गुणसमूह के निवास- गृह हैं, जो देवोंके द्वारा संस्तुत और दिशारूपी वस्त्र धारण करनेवाले ( दिगम्बर) हैं, जिन्होंने अपनी कान्तिसे मन्दराचलको मेखलाको जीत लिया है, जिन्होंने हार और रत्नमालाओं का परित्याग किया है, जो क्रीड़ारत श्रेष्ठ पक्षियोंसे युक्त अशोकवृक्षसे शोभित हैं, जिन्होंने अनेक नरकरूपी बिलोंको उखाड़ दिया है, जिनके चरण देवेन्द्रोंके मुकुटोंसे घर्षित हैं, जिन्होंने प्रचुर प्रसादोंसे प्रजाओंको आनन्दित किया है, जिनका प्रभामण्डल नवसूर्यको प्रभाके समान है और जो ( प्रमाणहीन होने के कारण ) अत्यन्त असह्य, मिथ्यागमके भावोंका अन्त करनेवाले हैं, जिनके कारण इन्द्रके द्वारा बरसाये गये पुष्पोंसे आकाश पुष्पित और चित्रित है, जो अनन्त यशवाले पापसे रहित अर्हत हैं, सिंहासन और तीन छत्रोंसे युक्त हैं, जो मिथ्यावादियोंका नाश करनेवाले कृपालु तथा हितकारी हैं, जो दुन्दुभियोंके स्वरसे विश्वरूपी घरको आपूरित करनेवाले हैं, जिनके नख दुपहरिया पुष्पों के समान आरक्त हैं, जो कामदेवसे युद्ध जीत चुके हैं, जिन्होंने जन्म, जरा और मृत्युको दूरसे छोड़ दिया है, जो मलसे रहित और वरदाता हैं, जो नियमों (व्रतों) के समूहमें लोन हैं, जिन्होंने अपनी मोहरूपी भीषण रजको नष्ट कर दिया है, और जो मत्तासमय ( मात्रा परिग्रहको शान्त करनेवाले – मात्रा समय छन्द ) कहे जाते हैं, ऐसे केवलज्ञानरूपी किरणोंसे युक्त सूर्य, जिन भगवान्को में प्रणाम करता हूँ ।
घत्ता - और भी मैं ( कवि पुष्पदन्त ), जिन्होंने दुर्गतिका नाश कर दिया है ऐसे, तथा क्रोधरूपी पापका नाश करनेवाले सन्मतिनाथको प्रणाम करता हूँ कि जिनके तीर्थकालमें ज्ञानसे समृद्ध पवित्र सम्यग्दर्शनको मैंने प्राप्त किया ॥१॥
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मान, माया और मदरूपी पापोंका नाश करनेवाले, अर्हन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधुओं के आकाशमें देवताओंके मुखोंको प्रणत दिखानेवाले चरणकमलों में मैं कवि (पुष्पदन्त) प्रणाम करता हूँ। जो (सरस्वती) हर्षं उत्पन्न करनेवाला सरस और मधुर बोलती हैं, जो अपने कोमलपदों (चरणों, पादों ) से लीलापूर्वक चलती हैं, जो गम्भीर, प्रसन्न और सोनेके समान शरीरवाली हैं, मानो कान्तिमयी कुटिल चन्द्रलेखा हो; चन्द्रलेखा कान्तिसे युक्त और कुटिल होती है सरस्वती भी स्वर्ण देहवाली होनेसे कान्तिमयी एवं कुटिल ( वक्रोक्ति संयुक्त ) है । जो अलंकारोसे युक्त और
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