________________
६६
महापुराण
सन्धि
७ वह बारह भावनाओंका चिन्तन करते हैं। भरतको शासन-भार देकर और परिवारसे विदा लेकर अनेक राजाओंके साथ दीक्षा ग्रहण करते हैं।
सन्धि ८
ऋषभ जिन छह माहका कठोर तपश्चरण करते हैं। उनके साथ जिन राजाओंने दीक्षा ग्रहण की थी वे उससे डिग गये। ऋषभ जिनके साले तथा महाकच्छ एवं कच्छ पुत्र नमि-विनमि जो कार्यवश बाहर गये हुए थे, आये और तलवार लेकर प्रतिमायोगमें स्थित ऋषभ जिनके सम्मुख खड़े हो गये। उनका कहना था कि उन्हें कुछ नहीं मिला जब कि दीक्षा लेते समय ऋषभ जिनने सारी धरती अपने पुत्रोंको बांट दी। पाताल लोकमें धरणेन्द्रका आसन कांपता है, और वह वहां आकर ऋषभ जिनकी वन्दनाभक्ति करता है। बादमें धरणेन्द्र उन्हें विजयाध पर्वतपर ले जाकर उत्तर और दक्षिण श्रेणियाँ प्रदान करता है। वे दोनों विद्याधर श्रेणियां थीं। नमि-विनमि इसे ऋषभ जिनकी भक्तिसे उत्पन्न पुण्यका परिणाम मानते हैं।
सन्धि ९
छह माहके बाद ऋषभ जिन आहार ग्रहण करने जाते हैं। हस्तिनापुरका राजा श्रेयांस स्वप्न देखता है, वह अपने बड़े भाई कुरु राजा सोमप्रभसे स्वप्नका फल पूछता है । सोमप्रभ बताते हैं कि तुम्हारे घर कोई महान् आदमी आयेगा । द्वारपाल ऋषभ जिनके आने की सूचना देता है, दोनों भाई दर्शनके लिए जाते हैं। उसे पूर्वजन्मके स्मरणसे आहार देनेकी विधि ज्ञात हो जाती है। वह इक्षुरसका आहार देता है। देव रत्नोंकी वृष्टि करते हैं। ऋषभ जिन पुरिमताल उद्यानमें पहुँचकर तप करते हैं। उन्हें केवलज्ञान प्राप्त होता है। इन्द्र समवसरणकी रचना करता है।
सन्धि १०
ऋषभ जिन धर्मका कथन करते हैं । भरत समवसरणमें उपस्थित होता है।
सन्धि ११
ऋषभ द्वारा तियंच जीवोंका कथन ।
सन्धि १२
भरतका दिग्विजयके लिए प्रस्थान । उसे चौदह रत्नोंकी प्राप्ति होती है। वह गंगा नदीके तटपर पहुँचता है। गंगासे उपहार प्राप्त कर भरत पहाड़ोंके अन्तरालमें बसी घोष बस्तीमें जाता है । वहाँसे आगे बढ़ता है ।
सन्धि १३
मगधराजको जीतकर वह दक्षिण द्वारके वरदामा तीर्थ के लिए प्रस्थान करता है । वरतनुको जीतता है । सिन्धुनदीकी ओर कूच करता है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org