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कथासार
सन्धि १
आवश्यक मंगलाचरण, प्रारम्भिक परिचय और प्रतिज्ञाके अनन्तर कवि बताता है कि अन्तिम तीथंकर महावीरका समवसरण राजगृहके विपुलाचल पर्वतपर आता है। मगधराज श्रेणिक महावीरकी वन्दनाभक्ति करने के लिए जाता है।
सन्धि २
समवसरणमें वन्दनाभक्तिके बाद राजा श्रेणिक गौतम गणधरसे पूछता है कि महापुराणकी अवतारणा किस प्रकार हुई । गौतम गणधर सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन करते हुए बताते हैं कि भोगभूमिका क्षय होनेपर कर्मभूमि प्रारम्भ होती है । क्रमशः चौदह कुलकरोंका जन्म हुआ। अन्तिम कुलकर नाभिराज और मरुदेवीसे प्रथम तीर्थंकर ऋषभ जिनके जन्मके समय इन्द्रके आदेशसे कुबेरने अयोध्या नगरीकी रचना की।
सन्धि ३
अतिशय और चमत्कारोंके बीच ऋषभ जिनका जन्म होता है। इन्द्र के नेतृत्वमें देव सुमेरु पर्वतपर शिशु जिनका अभिषेक करते हैं। अनेक उत्सवोंके बाद शिशु माताको सौंपकर देवता चले जाते हैं।
सन्धि ४
धीरे-धीरे ऋषभ जिन शैशव क्रीड़ाएं समाप्त करते हैं। पिताके अनुरोधपर ऋषभसे कच्छ
और महाकच्छकी कन्याओं यशोवती और सुनन्दाका विवाह हुआ । सन्धि ५
यशोवतीसे भरतका जन्म। बड़े होनेपर ऋषभ उसे ज्ञान-विज्ञान और कलाओंमें दीक्षित करते हैं। यशोवतीसे सौ पुत्र उत्पन्न हुए और एक कन्या ब्राह्मी। सुनन्दासे कामदेव, बाहुबलि और सुन्दरी। ऋषभ धरतीका सुशासन करते हैं। चूंकि उन्होंने कर्मभूमिके प्रारम्भमें इक्षुरसका पान करना सिखाया था अतः उनका कुल इक्ष्वाकुकुल कहलाया।
सन्धि६.
इन्द्र सोचता है कि ऋषभ भोग-विलासमें लीन हैं, यदि उन्होंने दीक्षा ग्रहण कर धर्मका उपदेश नहीं किया तो जैनधर्मका उच्छेद हो जायेगा। वह नीलांजनाको ऋषभके दरबारमें नृत्य करनेको भेजता है। नर्तकी नाचते-नाचते मृत्युको प्राप्त होती है। ऋषभ जिनको वैराग्य उत्पन्न हो जाता है। [९]
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