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लब्धिसारः। संयोगरूप सूक्ष्म अपर्याप्तसाधारणोंका है । सातवां संयोगरूप सूक्ष्म अपर्याप्त प्रत्येकका है, आठवां संयोगरूप बादर अपर्याप्त साधारणका है, नवमां संयोगरूप बादर अपर्याप्त प्रत्येकका है दशवां संयोगरूप दोइन्द्री जाति अपर्याप्तका है, ग्यारवां तेंद्री अपर्याप्तका है, बारवां चौइंद्री अपर्याप्तका है, तेरहवां असंज्ञी पंचेंद्री अपर्याप्त है और चौदहवां संज्ञी पंचेंद्री अपर्याप्तका है ॥ ११ ॥
अट्ट अपुण्णपदेसु वि पुण्णेण जुदेसु तेसु तुरियपदे । एइंदिय आदावं थावरणामं च मिलिदछ । १२ ॥ अष्टौ अपूर्णपदेष्वपि पूर्णेन युतेषु तेषु तुरीयपदे।
एकेंद्रियं आतापं स्थावरनाम च मिलितव्यम् ॥ १२ ॥ अर्थ-पन्द्रहवां सूक्ष्मपर्याप्तसाधारणका है, सोलवां सूक्ष्मपर्याप्तप्रत्येकका है, सत्रहवां बादरपर्याप्त साधारणका है, अठारवां बादर पर्याप्त प्रत्येक एकेंद्री आतपस्थावरका है, उन्नीसवां दो इंद्री पर्याप्तका है, बीसमां ते इंद्री पर्याप्तका है, इक्कीसवां चौइंद्री पर्याप्तका है और बावीसवां असंज्ञीपंचेद्री पर्याप्तका है ॥ १२ ॥
तिरिगदुगुज्जोवोवि य णीचे अपसत्थगमण दुभगतिए। .. हुंडासंपत्तेवि य णओसए वामखीलीए ॥ १३॥ तिर्यग्द्विकोद्योतोपि च नीचैः अप्रशस्तगमनं दुर्भगत्रिकं ।
हुंडासंप्राप्तेपि च नपुंसकं वामनकीलिते ॥ १३ ॥ अर्थ-तेईसवां तिर्यंचगति तिर्यंचगत्यानुपूर्वी उद्योतका है, चौवीसवां नीचगोत्रका है, पच्चीसवां अप्रशस्तविहायोगतिदुर्भगदुःखर अनादेयका है, छठवीसवां हुंडसंस्थान सृपाटिका संहननका है, सत्ताईसवां नपुंसकवेदका है और अट्ठाईसवां वामनसंस्थान कीलितसंहननका है ॥ १३ ॥
खुजद्धं णाराए इत्थीवेदे य सादिणाराए। णग्गोधवजणारा-ए मणुओरालदुगवजे ॥ १४ ॥ कुब्जार्धनाराचं स्त्रीवेदं च स्वातिनाराचे ।
न्यग्रोधवज्रनाराचे मनुष्यौदारिकद्विकवने ॥ १४ ॥ अर्थ-उनतीसवां कुब्जसंस्थान अर्धनाराचसंहननका है, तीसवां स्त्रीवेदका है, इकतीसवां स्वातिसंस्थाननाराचसंहननका है, बत्तीसवां न्यग्रोधसंस्थान वज्रनाराचसंहननका है और तेतीसवां मनुष्यगति मनुष्यगत्यानुपूर्वी औदारिक शरीर औदारिक अंगोपांग वज्र ऋषभनाराच संहननका है ॥ १४ ॥