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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । लोभ-इन दोनोंका उदय है, लोभसहित चढनेवालेके केवल लोभका ही उदय होता है इसलिये पूर्वोक्तप्रकार प्रथमस्थिति कही है । और चारोंमें किसी कषायके उदयसहित चढे सब जीवोंके सूक्ष्मलोभकी प्रथमस्थिति समान है उनके नपुंसक स्त्रीवेद सातनोकषायोंका उपशमनकाल समान है ॥ ३५०॥
जस्सुदयेणारूढो सेढिं तस्सेव ठविदि पढमठिदी। सेसाणावलिमत्तं मोत्तूण करेदि अंतरं णियमा ॥ ३५१ ॥
यस्योदयेनारूढो श्रेणिं तस्यैव स्थापयति प्रथमस्थितिः।
शेषाणामावलिमात्रं मुक्त्वा करोति अंतरं नियमात् ॥ ३५१ ॥ अर्थ-जिस वेद या कषायके उदयकर जीव श्रेणी चढा हो उसकी अन्तर्मुहूर्तमात्र प्रथमस्थिति स्थापन करता है और उदयरहित वेद या कषायोंकी आवलिमात्र स्थितिको छोड़ उसके ऊपरके निषेकोंका अन्तर करता है ॥ ३५१ ॥
जस्सुदएणारूढो सेढिं तकालपरिसमत्तीए । पढमहिदिं करेदि हु अणंतरुवरुदयमोहस्स ॥ ३५२ ॥
यस्योदयेनारूढः श्रेणिं तत्कालपरिसमाप्तौ।
प्रथमस्थितिं करोति हि अनंतरोपर्युदयमोहस्य ॥ ३५२ ॥ अर्थ-जिस कषायके उदयसहितश्रेणी चढा है उस कषायकी प्रथमस्थिति समाप्त होनेपर उसके अनन्तरवर्ती कषायकी प्रथमस्थिति करता है। भावार्थ-क्रोधसहितश्रेणी चढे जीवके क्रोधकी प्रथमस्थितिका काल पूर्ण हुए बाद मानकी प्रथमस्थिति होती है इसीप्रकार आगे मायादिककी जानना । इसीतरह मान वगैर सहित चढे जीवमें जानना ॥ ३५२ ॥
माणोदएण चडिदो कोहं उवसमदि कोहअद्धाए । मायोदएण चडिदो कोहं माणं सगद्धाए ॥ ३५३ ॥
मानोदयेन चटितः क्रोधं उपशमयति क्रोधाद्धायाम् ।
मायोदयेन चटितः क्रोधं मानं स्वकाद्धायाम् ॥ ३५३ ॥ अर्थ-क्रोधके उदयकालमें ही मानके उदय सहित चढा जीव उदय रहित तीन क्रोधोंको उपशमाता है । उसीतरह मायाके उदय सहित चढा हुआ जीव उदय रहित तीन क्रोधोंको और तीन मानोंको अपने २ कालमें उपशमाता है ॥ ३५३ ॥
लोभोदएण चडिदो कोहं माणं च मायामुवसमदि । अप्पप्पण अद्धाणे ताणं पढमहिदी णस्थि ॥ ३५४ ॥ लोभोदयेन चटितः क्रोधं मानं च मायामुपशाम्यति । आत्मात्मनो अध्वाने तेषां प्रथमस्थितिर्नास्ति ॥ ३५४ ॥