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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । अर्थ-स्त्रीवेदयुक्त क्रोधादिकोंके उदय सहित श्रेणी चढे चार प्रकारके जीव हैं । वे वेद उदयरहित हुए पुरुषवेद और छह हास्यादि-इस तरह सात नोकषायोंको एकसाथ उपशमाते हैं । अब नपुंसकवेदके उदयसहित श्रेणी चढे हुएके विशेषता कहते हैं ॥ ३५८ ॥
संददयंतरकरणो संढद्धाणम्हि अणुवसंतसे । इथिस्स य अद्धाए संढं इत्थिं च समगमुवसमदि ॥ ३५९ ॥ पंढोदयांतरकरणः षंढाद्धायां अनुपशांतांशे ।
स्त्रियः च अद्धायां षंढं स्त्री च समकमुपशमयति ॥ ३५९ ॥ अर्थ-वे चारप्रकारके जीव नपुंसकवेदका अन्तर करते हुए नपुंसक वेदके कालमें नपुंसकवेदका उपशम समाप्त न हुआ हो तबतक स्त्रीवेद नपुंसकवेद इनदोनोंका एकसाथ उपशम करता है। वहांपर पुरुषवेद सहित चढे जीवके स्त्रीवेदके उपशम करनेके कालको प्राप्त होकर ॥ ३५९॥
ताहे चरिमसवेदो अवगदवेदो हु सत्तकम्मंसे । सममुवसामदि सेसा पुरिसोदयचलिदभंगा हु ॥ ३६०॥ तस्मिन् चरमसवेदो अपगतवेदो हि सप्तकर्माशान् ।
सममुपशमयति शेषाः पुरुषोदयचलितभङ्गा हि ॥ ३६० ॥ अर्थ-सवेद अवस्थाके अन्तसमयको प्राप्त हुआ स्त्रीवेद नपुंसकवेदके उपशमको एकसाथ समाप्त करता है । उसके वाद अपगतवेदी हुआ पुरुषवेद छह हास्यादि कषाय-इन सातोंको युगपत् उपशमाता है । अन्य सब पुरुषवेद सहित श्रेणी चढे जीवके समान विधान जानना ॥ ३६०॥
पुंकोहस्स य उदए चलपलिदे पुत्वदो अपुरोत्ति । एदिस्से अद्धाणं अप्पाबहुगं तु वोच्छामि ॥ ३६१॥ पुंक्रोधस्य च उदये चटपतितेऽपूर्वतो अपूर्व इति ।
एतस्य अद्धानामल्पबहुकं तु वक्ष्यामि ॥ ३६१ ॥ अर्थ-पुरुषवेद और क्रोधकषायके उदय सहित चढकर .पड़े जीवके आरोहक अपूर्वकरणके प्रथम समयसे लेकर अवरोहक अपूर्वकरणके अन्तसमय पर्यंतकालमें संभवते अल्प बहुत्वके स्थानोंको कहूंगा ॥ ३६१ ॥
अवरादो वरमहियं रसखंडुकीरणस्स अद्धाणं । संखगुणं अवरहिदिखंडस्सुक्कीरणो कालो ॥ ३६२ ॥
अवरात् वरमधिकं रसखंडोत्करणस्याध्वानम् । संख्यगुणं अवरस्थितिखंडस्योत्करणः कालः ॥ ३६२ ॥