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लब्धिसारः।
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अब स्त्रीवेदसहित चढे चारप्रकार जीवोंके विशेष कहते हैं;
पुरिसोदएण चडिदस्सित्थी खवणद्धउत्ति पढमठिदी। इत्थिस्स सत्तकम्मं अवगदवेदो समं विणासेदि ॥ ६०२॥
पुरुषोदयेन चटितस्य स्त्री क्षपणाद्धांतं प्रथमस्थितिः ।
स्त्रिया सप्तकर्माणि अपगतवेदः समं विनाशयति ॥ ६०२ ॥ अर्थ-पुरुषवेदसहित चढे हुए जीवके स्त्रीवेदके क्षपणाकालतक प्रथमस्थिति होती है। स्त्रीवेद सहित चढा जीव वेद उदयकर रहित हुआ सात नोकषायके क्षपणाकालमें सब सात नोकषायोंको खिपाता है ।। ६०२॥ अब नपुंसकवेद सहित चढे जीवोंका व्याख्यान करते हैं
थीपढमहिदिमेत्ता संढस्सवि अंतरादु सेढेक्क । तस्सद्धाति तदुवरिं संढा इच्छि च खवदि थीचरिमे ॥ ६०३॥ अवगयवेदो संतो सत्त कसाये खवेदि.कोहुदये । पुरिसुदये चडणविही सेसुदयाणं तु हेटुवरि ॥ ६०४ ॥ स्त्रीप्रथमस्थितिमात्रा षंढस्यापि अंतरात् षंढेकः । तस्याद्धा इति तदुपरि षंढं स्त्रीं च क्षपयति स्त्रीचरमे ॥ ६०३ ॥ अपगतवेदः संतः सप्त कषायान् क्षपयति क्रोधोदयेन ।
पुरुषोदयेन चटनविधिः शेषोदयानां तु अधस्तनोपरि ॥ ६०४ ॥ अर्थ-स्त्रीवेदकी प्रथम स्थिति प्रमाण नपुंसकवेदकी भी प्रथमस्थिति स्थापन करता है । अन्तरकरणके वाद नपुंसकवेदका क्षपणाकाल है । उसके वाद स्त्रीवेदके क्षपणाकालके अंतसमयमें सब नपुंसक व स्त्रीवेदको एक समयमें क्षय करता है। उसके बाद वेद रहित हुआ सात नोकषायोंका क्षय करता है । अब शेष नीचे वा ऊपर सब विधान क्रोधके उदय और पुरुषवेदके उदयसहित श्रेणी चढे हुएके समान जानना ॥ ६०३ । ६०४ ॥ इसतरह क्षीणकषायके द्विचरमसमयतक कथन किया । अब आगेका कथन करते हैं;
चरिमे पढमं विग्धं चउदंसण उदयसत्तवोछिण्णा। . से काले जोगिजिणो सचण्हू सवदरसी य ॥ ६०५॥
चरमे प्रथमं विघ्नं चतुर्दर्शनं उदयसत्त्वव्युच्छिन्नाः ।
स्खे काले योगिजिनः सर्वज्ञः सर्वदर्शी च ॥ ६०५॥ अर्थ-क्षीणकषायके अन्तसमयमें पहला पांचप्रकार ज्ञानावरण पांचप्रकार अन्तराय __ ल. सा. २१