Book Title: Labdhisara
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्। बहुठिदिखंडे तीदे संखा भागा गदा तदद्धाए । चरिमं खंडं गिण्हदि लोभं वा तत्थ दिजादि ॥ ५९८॥ .
बहुस्थितिखंडेऽतीते संख्यभागा गतास्तद्धायाः । __चरमं खंडं गृह्णाति लोभ इव तन देयादि ॥ ५९८ ॥ .. अर्थ-पूर्वरीतिसे क्रमसे बहुत स्थितिकांडक वीत जानेपर क्षीणकषायकालके संख्यात बहुभाग वीत जानेपर तीन घातियों के अन्तकांडकको ग्रहण करता है । वहां देयादि द्रव्यका विधान सूक्ष्मलोभके समान जानना ॥ ५९८ ॥
चरिमे खंडे पडिदे कदकरणिजोत्ति भण्णदे एसो। तस्स दुचरिमे णिहा पयला सत्तुदयवोछिण्णा ॥ ५९९ ॥
चरमे खंडे पतिते कृतकरणीय इति भण्यते एषः।
तस्य द्विचरमे निद्रा प्रचला सत्त्वोदयव्युच्छिन्ना ॥ ५९९ ॥ ___ अर्थ-इसप्रकार अन्तकांडकका घात होनेपर इसको कृतकृत्य वेदक छद्मस्थ कहते हैं । और क्षीणकषायके द्विचरमसमयमें निद्रा प्रचला कर्मका सत्त्व और उदयका व्युच्छेद हुआ ॥ ५९९ ॥ आगे पुरुष वेद और मानादिकषायसहित श्रेणी चढनेवालेके विशेषता कहते हैं
कोहस्स य पढमठिदीजुत्ता कोहादिएकदोतीहिं। खवणद्धा हि कमसो माणतियाणं तु पढमठिदी ॥६००॥ क्रोधस्य च प्रथमस्थितियुक्ता क्रोधादिएकद्वित्रयाणाम् ।
क्षपणाद्धा हि क्रमशो मानत्रयाणां तु प्रथमस्थितिः ॥ ६०० ॥ अर्थ-क्रोधकी प्रथमस्थिति सहित क्रोधादि एक दो तीन कषायोंका क्षपणाकाल क्रमसे मानादि तीन कषायोंकी प्रथमस्थिति होती है ॥ ६०० ॥
माणतियाणुदयमहो कोहादिगिदुतिय खवियपणिधम्हि । हयकण्णकिट्टिकरणं किच्चा लोहं विणासेदि ॥ ६०१॥
मानत्रयाणामुदयमथ क्रोधाद्येकद्विवयं क्षपकप्रणिधौ। ... हयकर्णकिट्टिकरणं कृत्वा लोभं विनाशयति ॥ ६०१॥ अर्थ-मानादिक तीन कषायोंके उदयसहित श्रेणी चढा जीव क्रमसे क्रोधादिक एक दो तीन कषायोका क्षपणाकालके निकट अश्वकर्ण सहित कृष्टिकरणको करके लोभका नाश करता है ॥ ६०१ ॥ इसप्रकार पुरुषवेदसहित चढे चारप्रकार जीवोंकी विशेषता कही ।

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