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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । समयस्थितिको बंधः सातस्योदयात्मको यतो तस्य ।
तेन असातस्योदयः सातस्वरूपेण परिणमति ॥ ६१३ ॥ अर्थ-क्योंकि केवली भगवानके एक समयमात्र स्थितिलिये सातावेदनीयका बन्ध होता है वह उदयस्वरूप ही है इसकारण असाताका उदय भी सातारूप होके परिणमता है । यहां परमविशुद्धि होनेसे साताका अनुभाग बहुत है इसलिये असाता जन्य क्षुधादि परीषह की वेदना नहीं है और वेदनाके विना उसका प्रतीकार आहार भी नहीं संभव होता ॥ ६१३ ॥ ___ आगे कोई प्रश्न करे कि आहार नहीं है तो केवलीके आहारमार्गणा कैसे कही है उसका उत्तर कहते हैं;
पडिसमयं दिवतमं जोगी णोकम्मदेहपडिबद्धं । समयपबद्धं बंधदि गलिदवसेसाउमेत्तठिदी ॥ ६१४ ॥
प्रतिसमयं दिव्यतमं योगी नोकर्मदेहप्रतिबद्धम् ।
समयप्रबद्धं बध्नाति गलितावशेषायुमात्रस्थितिः ॥ ६१४ ॥ अर्थ-सयोगकेवली जिन समय समय प्रति औदारिक शरीर संबन्धी अति उत्तम परमाणुओंके समयप्रबद्धको ग्रहण करते हैं उसकी स्थिति आयु व्यतीत होनेके वाद जितना शेष रहे उतनी है । इसलिये नोकर्मवर्गणाको ग्रहण करनेका ही नाम आहारमार्गणा है। उसका सद्भाव केवलीमें है । क्योंकि ओज १ लेप्य १ मानस १ कवल १ कर्म १ नोकर्म १ भेदसे छह प्रकारका आहार है। उनमेंसे केवलीके कर्म नोकर्म ये दो आहार होते हैं । साता वेदनीयके समयप्रबद्धको ग्रहण करता है वह कर्म आहार है और औदारिक समयप्रबद्धको ग्रहण करता है वह नोकर्म आहार है ॥ ६१४ ॥
णवरि समुग्घादगदे पदरे तह लोगपूरणे पदरे । णत्थि तिसमये णियमा णोकम्माहारयं तत्थ ॥ ६१५ ॥ नवरि समुद्धातगते प्रतरे तथा लोकपूरणे प्रतरे।
नास्ति त्रिसमये नियमात् नोकर्माहारकस्तत्र ॥ ६१५ ॥ अर्थ-इतना विशेष है कि केवलसमुद्घातको प्राप्त केवली के दो प्रतरके समय और एक लोकपूरणका समय-इसतरह तीन समयोंमें नोकर्मरूप आहार नियमसे नहीं है अन्य सब सयोगीकालमें नोकर्मका आहार है ॥ ६१५ ॥ अब जिस कालमें समुद्धात क्रिया होती है उसे कहते हैं;
अंतोमुहुत्तमाऊ परिसेसे केवली समुग्घादं । दंड कवाटं पदरं लोगस्स य पूरणं कुणई ॥ ६१६ ॥