Book Title: Labdhisara
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 168
________________ १५२ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । दचं पढमे समये देदि हु सुहुमेसणंतभागूणं । थूलपढमे असंखगुणूणं तत्तो अणंतभागूणं ॥ ५६६ ॥ द्रव्यं प्रथमे समये ददाति हि सूक्ष्मेष्वनंतभागोनम् । स्थूलप्रथमे असंख्यगुणोनं ततो अनंतभागोनम् ॥ ५६६ ॥ अर्थ-सूक्ष्मकृष्टिकरणकालके प्रथमसमयमें सूक्ष्मकृष्टिकी जघन्यकृष्टि से लेकर अनन्तवां भाग घटता हुआ क्रमलिये, उत्कृष्ट सूक्ष्मकृष्टिसे प्रथम जघन्यवादर कृष्टिमें असंख्यातगुणा घटता और उससे द्वितीयादि वादर कृष्टियोंमें अनन्तवां भाग घटता क्रमलिये द्रव्य दिया जाता है ॥ ५६६ ॥ इसतरह प्रथमसमयमें सूक्ष्मकृष्टिकी प्ररूपणा समाप्त हुई। विदियादिसु समयेसु अपुवाओ पुवकिटिहेट्ठाओ। पुवाणमंतरेसुवि अंतरजणिदा असंखगुणा ॥ ५६७ ॥ द्वितीयादिषु समयेषु अपूर्वाः पूर्वकृष्टयधस्तनाः। पूर्वासामंतरेष्वपि अंतरजनिता असंख्यगुणाः ॥ ५६७ ॥ अर्थ-द्वितीय आदि समयोंमें अपूर्व ( नवीन ) सूक्ष्म कृष्टियां पूर्वकृष्टियों के नीचे की जाती हैं और उनके वीच वीचमें अन्तर कृष्टियां की जाती हैं । वहां अधस्तन कृष्टियोंसे अन्तरकृष्टियोंका प्रमाण असंख्यातगुणा है ॥ ५६७ ॥ दवगपढमे सेसे देदि अपुवेसणंतभागूणं । पुवापुचपवेसे असंखभागूणमहियं च ॥ ५६८॥ द्रव्यगप्रथमे शेषे ददाति अपूर्वेष्वनंतभागोनम् । पूर्वापूर्वप्रवेशे असंख्यभागोनमधिकं च ॥ ५६८ ॥ अर्थ-द्वितीयादि समयोंमें प्रथमसमयकी तरह द्रव्य दिया जाता है । विशेष इतना है कि सूक्ष्मकृष्टिके द्रव्यको अधस्तन अपूर्वकृष्टियोंमें अनन्तवां भाग घटता हुआ क्रमलिये, पूर्वकृष्टिके प्रवेशमें असंख्यातवां भागमात्र घटता और अपूर्वकृष्टि के प्रवेश होनेपर असंख्यातवां भागमात्र अधिक द्रव्य दिया जाता है ॥ ५६८ ॥ पढमादिसु दिस्सकमं सुहुमेसु अणंतभागहीणकम । बादरकिट्टिपदेसो असंखगुणिदं तदो हीणं ॥५६९ ॥ प्रथमादिषु दृश्यक्रमं सूक्ष्मेष्वनंतभागहीनक्रमम् । बादरकृष्टिप्रदेशो असंख्यगुणितस्ततो हीनः ॥ ५६९ ॥ अर्थ-प्रथमादिसमयोंमें दृश्यमान द्रव्यका क्रम सूक्ष्मकृष्टियोंमें अनन्तगुणा घटता क्रमलिये है। उसके वाद द्वितीयादि द्वितीयसंग्रहकी अन्त वादरकृष्टिपर्यंत दृश्यमानद्रव्य अनन्तगुणां घटता क्रमलिये है ऐसा जानना ॥ ५६९ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192