Book Title: Labdhisara
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 171
________________ लब्धिसारः। ताणं पुण ठिदिसंतं कमेण अंतोमुहुत्तयं होइ । वस्साणं संखेजसहस्साणि असंखवस्साणि ॥ ५७७ ॥ तेषां पुनः स्थितिसत्त्वं क्रमेणांतर्मुहूर्तकं भवति । वर्षाणां संख्येयसहस्राणि असंख्यवर्षाणि ॥ ५७७ ॥ अर्थ-उनका स्थितिसत्त्व क्रमसे लोभका अन्तर्मुहूर्त, तीन घातियाओंका संख्यातहजार वर्ष और तीन अघातियाओंका असंख्यात वर्षमात्र है ॥ ५७७ ॥ से काले सुहुमगुणं पडिवजदि सुहुमकिट्टिठिदिखंडं। आणायदि तद्दवं उक्कट्टिय कुणदि गुणसेडिं ॥ ५७० ॥ स्वे काले सूक्ष्मगुणं प्रतिपद्यते सूक्ष्मकृष्टिस्थितिखंडं। आनयति तद्रव्यं अपकृष्य करोति गुणश्रेणिं ॥ ५७८ ॥ अर्थ-अपने कालमें सूक्ष्मसांपरायगुणस्थानको प्राप्त होता है वहांपर लोभकी सूक्ष्मकृटिके स्थितिखण्डको करता है और मोह के एकभाग द्रव्यको अपकर्षणकर गुणश्रेणी करता है ॥ ५७८ ॥ गुणसेढि अंतरठिदि विदियट्ठिदि इदि हयंति पवतिया । सुहुमगुणादो अहिया अवद्विदुदयादि गुणसेढी ॥ ५७९ ॥ गुणश्रेणिरंतरस्थितिः द्वितीयस्थितिरिति भवंति पर्वत्रयाणि । ___ सूक्ष्मगुणतोऽधिका अवस्थितोदयादिः गुणश्रेणी ॥ ५७९ ॥ अर्थ-गुणश्रेणी अन्तरस्थिति द्वितीयस्थिति-ये तीन पर्व हैं । सूक्ष्मसांपरायके कालसे कुछ विशेष अधिक उदयादि अवस्थितरूप गुणश्रेणी आयाम है ॥ ५७९ ॥ उक्कट्टिदइगिभागं गुणसेढीए असंखवहुभागं । अंतरहिदे विदियठिदी संखसलागा हि अवहरिया ॥ ५८० ॥ गुणिय चउरादिखंडे अंतरसयलहिदिम्हि णिक्खिवदि । सेसबहुभागमावलिहीणे विदियहिदीए हु॥ ५८१॥ अपकर्षितैकभागं गुणश्रेण्यामसंख्यबहुभागम् । अंतरहिते द्वितीयस्थितिः संख्यशलाका हि अपहरिताः ॥ ५८० ॥ गुणित्वा चतुरादिखंडे अंतरसकलस्थितौ निक्षिपति । शेषबहुभागमावलिहीने द्वितीयस्थितौ हि ॥ ५८१ ॥ अर्थ-अपकर्षण किये द्रव्यका असंख्यातवां एक भाग द्रव्यको गुणश्रेणी आयाममें देते हैं और शेष असंख्यात बहुभागद्रव्यमें अन्तरंस्थितिसे भाजित द्वितीयस्थितिरूप जो

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