Book Title: Labdhisara
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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लब्धिसारः।
१५१ अर्थ-उसके वाद अपने कालमें लोभकी द्वितीयसंग्रहकृष्टिसे गुणश्रेणिरूप प्रथमस्थिति करता है उसका प्रमाण शेष अनिवृत्तिकरणकालके आवलिमात्र अधिक है । और उसीकालमें लोभकी द्वितीयसंग्रहकृष्टि और तृतीयसंग्रहकृष्टिसे सूक्ष्म अनुभाग शक्तिवाली सूक्ष्मकृष्टिको करता है ॥ ५६१ ॥
लोहस्स तदियसंगहकिट्टीए हेढदो अवठ्ठाणं । सुहमाणं किट्टीणं कोहस्स य पढमकिट्टिणिभा ॥ ५६२ ॥ लोभस्य तृतीयसंग्रहकृष्टया अधस्तनतो अवस्थानम् ।
सूक्ष्मानां कृष्टीनां क्रोधस्य च प्रथमकृष्टिनिभा ॥ ५६२ ।। अर्थ-उन सूक्ष्मकृष्टियोंका लोभकी तीसरी संग्रहकृष्टिके नीचे अवस्थान है और वे सूक्ष्मकृष्टिकां क्रोधकी प्रथमकृष्टिके समान हैं ॥ ५६२ ॥
कोहस्स पढमकिट्टी कोहे छुद्धे दु माणपढमं च । माणे छुद्धे मायापढमं मायाए संछुद्धे ॥ ५६३॥ लोहस्स पढमकिट्टी आदिमसमयकदसुहुमकिट्टी य। अहियकमा पंचपदा सगसंखेजदिमभागेण ॥ ५६४ ॥ क्रोधस्य प्रथमकृष्टिः क्रोधे क्षुब्धे तु मानप्रथमं च । माने क्षुब्धे मायाप्रथमं मायायां संक्षुब्धायाम् ॥ ५६३ ॥ लोभस्य प्रथमकृष्टिरादिमसमयकृतसूक्ष्मकृष्टिश्च ।
अधिकक्रमाणि पंचपदानि स्वकसंख्येयभागेन ॥ ५६४ ॥ अर्थ-क्रोधकी प्रथमसंग्रहकी अवयवकृष्टियां थोड़ी हैं । क्रोधकी तीनों संग्रह कृष्टियां मानकीके ऊपर मिलानेसे मानकी प्रथमसंग्रहकी अवयवकृष्टियां अधिक हैं । मानकी तीनों कृष्टियां मायाके ऊपर मिलानेसे मायाकी प्रथमसंग्रहकी अवयवकृष्टियां अधिक हैं, मायाकी तीनों संग्रहकृष्टियां लोभके ऊपर मिलानेसे लोभकी प्रथमसंग्रहकी अवयवकृष्टिं विशेष अधिक हैं । इसतरह ये पांच स्थान संख्यातवां भाग अधिक क्रमलिये जानना ॥ ५६३ । ५६४ ॥
सुहुमाओ किट्टीओ पडिसमयमसंखगुणविहीणाओ। दबमसंखेजगुणं विदियस्स य लोहचरिमोत्ति ॥ ५६५ ॥
सूक्ष्माः कृष्टयः प्रतिसमयमसंख्यगुणविहीनाः ।
द्रव्यमसंख्येयगुणं द्वितीयस्य च लोभचरम इति ।। ५६५ ॥ .. अर्थ-सूक्ष्मकृष्टियां क्रमसे समय समय प्रति असंख्यातगुणी कम हैं और द्रव्य संख्यो. तगुणा द्वितीयसमयसे लेकर लोभकी सूक्ष्मकृष्टिके अन्तसमयतक जानना ॥ ५६५॥

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