Book Title: Labdhisara
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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२४९
लब्धिसारः ।
अर्थ — क्रोधकी प्रथम संग्रहकृष्टिके वेदककी तरह मानकी प्रथम संग्रहकृष्टिका वेदकविधान जानना । और अन्तसमय में क्रोधके विना तीन संज्वलनका स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्तकम पचास दिन है और स्थितिसत्त्व अन्तर्मुहूर्तकम चालीस महीनेमात्र है ॥ ५५२ ॥ बिदियस्स माणचरिमे चत्तं बत्तीस दिवसमासाणि । अंतमुत्तीणा बंधो सत्तो तिसंजलणगाणं ॥ ५५३ ॥ द्वितीयस्य मानचरमे चत्वारिंशत्द्वात्रिंशत् दिवसमासाः । अंतर्मुहूर्तहीना बंधः सत्त्वं त्रिसंज्वलनानाम् ॥ ५५३ ॥
अर्थ - मानकी दूसरी संग्रहकृष्टिके वेदकके अन्तसमय में तीन संज्वलनका स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्तकम चालीस दिन और स्थितिसत्त्व अन्तर्मुहूर्तकम बत्तीस महीनेमांत्र है ॥ ५५३ ॥ तदियस माणचरिमे तीसं चउवीस दिवसमासाणि । तिन्हं संजलणाणं ठिदिबंधो तह य सत्तो य ॥ ५५४ ॥
तृतीयस्य मानचरमे त्रिंशत् चतुर्विंशत् दिवसमासाः ।
त्रयाणां संज्वलनानां स्थितिबंधस्तथा च सत्त्वं च ॥ ५५४ ॥
अर्थ — उसके बाद मानकी तीसरी संग्रहकृष्टिवेदकके अन्तसमय में तीन संज्वलनका स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्तकम तीस दिन और स्थितिसत्त्व अन्तर्मुहूर्तकम चौवीस महीने मात्र होता है ॥ ५५४ ॥
पढमगमायाचरिमे पणवीसं वीस दिवसमासाणि । अंतमुत्तीणा बंधो सत्तो दुसंजलणगाणं ॥ ५५५ ॥ प्रथमगमायाचरमे पंचविंशतिः विंशतिः दिवसमासाः । अंतर्मुहूर्तहीना बंधः सत्त्वं द्विसंज्वलनकयोः ॥ ५५५ ॥
अर्थ – मायाकी प्रथम संग्रहकृष्टि वेदकके अन्तसमय में संज्वलन माया लोभ स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्तकम पच्चीस दिन और स्थितिसत्त्व अन्तर्मुहूर्तकम वीस है ॥ ५५५ ॥
बिदियगमायाचरिमे वीसं सोलं च दिवसमासाणि । अंतमुत्तीण बंध सत्तो दुसंजलणगाणं ॥ ५५६ ॥ द्वितीयगमायाचरमे विंशं षोडश च दिवसमासाः ।
अंतर्मुहूर्तहीना बंधः सत्त्वं द्विसंज्वलनकयोः ॥ ५५६ ॥ ३
इन दोका महीने का
अर्थ – मायाकी दूसरी संग्रहकृष्टिवेदक के अन्तसमयमें दो संज्वलनोंका स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्तकम वीस दिन है और स्थितिसत्त्व अन्तर्मुहूर्तकम सोलह महीना है ॥ ५५६ ॥

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