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लब्धिसारः।
१२१ ठिदिबंधसहस्सगदे संढो संकामिदो हवे पुरिसे । पडिसमयमसंखगुणं संकामगचरिमसमओत्ति ॥ ४३७ ॥ स्थितिबंधसहस्रगते पंढः संक्रामितो भवेत् पुरुषे ।
प्रतिसमयमसंख्यगुणं संक्रामकचरमसमय इति ॥ ४३७ ॥ अर्थ-अन्तरकरणके अनंतरसमयसे लेकर संख्यातहजार स्थितिबन्ध वीतजानेपर नपुं. सकवेद पुरुषवेदमें संक्रमण किया जाता है । और समय समय प्रति असंख्यातगुणा क्रम लिये संक्रमणकालके अंतसमयतक वह द्रव्य संक्रमित होता है ॥ ४३७ ॥
बंधेण होदि उदओ अहिओ उदएण संकमो अहिओ। गुणसेढि असंखेजापदेसअंगेण वोधवा ॥ ४३८ ॥ बंधेन भवति उदयो अधिक उदयेन संक्रमो अधिकः ।
गुणश्रेणिरसंख्येयप्रदेशांगेन बोद्धव्या ॥ ४३८ ॥ अर्थ-उस कालमें पुरुषवेदके बंधद्रव्यसे उदय अधिक है और उदयद्रव्यसे संक्रमण द्रव्य अधिक है । वह अधिकता असंख्यात प्रदेशसमूहोंकर गुणश्रेणी अर्थात् गुणकारकी पङ्गिरूप जानना ॥ ४३८ ॥
गुणसे ढिअसंखेजापदेसअंगेण संकमो उदओ। से काले से काले उजो बंधो पदेसंगो ॥ ४३९ ॥ गुणश्रेण्यसंख्येयप्रदेशांगेन संक्रम उदयः ।
स्खे काले स्खे काले योग्यो बंधः प्रदेशांगः ॥ ४३९ ॥ अर्थ-अपने २ कालमें स्वस्थान अपेक्षा संक्रमसे संक्रम उदयसे उदय प्रदेश अपेक्षाकर असंख्यातरूप गुणकारकी पति लिये है । और अपने पुरुषवेदके बन्धकालमें प्रदेशरूप बंध भजनीय है ॥ ४३९ ॥
इदि संढं संकामिय से काले इत्थिवेदसंकमगो। अण्णं ठिदिरसखंडं अण्णं ठिदिबंधमारवई ॥ ४४०॥ इति षंढं संक्राम्य स्खे काले स्त्रीवेदसंक्रामकः।
अन्यस्थितिरसखंडमन्यं स्थितिबंधमारभते ॥ ४४० ॥ ___ अर्थ-इसप्रकार नपुंसकवेदको संक्रमण कर अपने कालमें स्त्रीवेदका संक्रामक होता है अर्थात् पुरुषवेदमें संक्रमणकर क्षपण करनेवाला होता है । वहां प्रथमसमयमें पूर्व से अन्य प्रमाण लिये स्थितिकांडक अनुभागकांडक और स्थितिबन्धको आरंभ करता है ॥ ४४० ॥
थी अद्धा संखेजभागे पगदे तिघादिठिदिबंधो। वस्साणं संखेज थी संकं तापगढ़ते ॥ ४४१॥