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लब्धिसारः।
१३१ प्रथमादिषु दृश्यक्रमं तत्कालजस्पर्धकानां चरम इति ।
हीनक्रमं स्खे काले हीनं हीनं क्रमं ततः ॥ ४७७ ॥ अर्थ-अपूर्वस्पर्धक करणकालके प्रथमादि समयों में देखनेयोग्य परमाणुओका क्रम उस समयमें किये गये स्पर्धकोंकी अन्तवर्गणा पर्यंत विशेष घटता क्रमलिये है । और उसके ऊपर जो वर्गणा उसका भी दृश्य द्रव्य एक चयमात्र घटता हुआ है ऐसा चय घटता क्रम जानना ॥ ४७७ ॥ आगे प्रथम अनुभागकांडकके घात होनेपर क्या होता है वह दिखलाते हैं;
पढमाणुभागखंडे पडिदे अणुभागसंतकम्मं तु । लोभादणंतगुणिदं उवरिं पि अणंतगुणिदकमं ॥ ४७८ ॥
प्रथमानुभागखंडे पतिते अनुभागसत्त्वफर्म तु।
लोभादनंतगुणितमुपर्यपि अनंतगुणितक्रमम् ॥ ४७८ ॥ अर्थ-इस तरह प्रथम अनुभागखण्डके पतन होनेपर लोभसे अनन्तगुणा क्रमलिये अनुभागसत्त्वरूप कर्म होता है ऐसा जानना ॥ ४७८ ॥
आदोलस्स य पढमे णिवत्तिदपुवफहयाणि बहु । पडिसमयं पलिदोवममूलासंखेजभागभजियकमा ॥ ४७९ ॥
आंदोलस्य च प्रथमे निर्वर्तितापूर्वस्पर्धकानि बहूनि ।
प्रतिसमर्थ पलितोपममूलासंख्येयभागभजितक्रमम् ॥ ४७९ ॥ अर्थ-आंदोलकरणके प्रथमसमयमें किये हुए अपूर्वस्पर्धक बहुत हैं उसके वाद समय समय प्रति पत्यके वर्गमूलका असंख्यातवां भागकर भाजित क्रमलिये हुए जानना ॥४७९॥
आदोलस्स य चरिमे पुवादिमवग्गणाविभागादो। दो चढिमादीणादी चढिदवामेत्तणंतगुणा ॥ ४८० ॥
आंदोलस्य च चरमे पूर्वादिमवर्गणाविभागात् ।
द्विचटितादीनामादिः चटितव्यामात्रानंतगुणाः ॥ ४८० ॥ अर्थ-अश्वकर्णकालके अन्तसमयमें प्रथमस्पर्धककी आदिवर्गणामें अविभागप्रतिच्छेद अनुभागके थोड़े हैं उससे आगे दूसरे वगैरःके आदिकी वर्गणामें दूने तिगुने आदि अनन्तगुणे जानना ॥.४८० ॥--
आदोलस्स य पढमे रसखंडे पाडिदे अपुषादो। कोहादो अहियकमा पदेसगुणहाणिफड्ढया तत्तो ॥ ४८१ ॥ होदि असंखेजगुणं इगिफड्ढयवग्गणा अणंतगुणा। तत्तो अणंतगुणिदा कोहस्स अपुवफड्ढयाणं च ॥ ४८२ ॥