Book Title: Labdhisara
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 155
________________ लब्धिसारः। १३९ लोहादो कोहादो कारउ वेदउ हवे किट्टी। आदिमसंगहकिहि वेदयदि ण विदिय तिदियं च ॥ ५१०॥ लोभात् क्रोधात् कारको वेदको भवेत् कृष्टेः । आदिमसंग्रहकृष्टिं वेदयति न द्वितीयां तृतीयां च ॥ ५१० ॥ अर्थ-कृष्टिका कारक तो लोभसे लेकर क्रमरूप है और वेदक है वह क्रोधसे लेकर क्रमरूप है । तथा यहां पहले क्रोधकी प्रथम संग्रहकृष्टिको ही अनुभवता है द्वितीय तृतीय संग्रह कृष्टिको नहीं अनुभवता ऐसा जानना ॥ ५१० ॥ किट्टीवेदगपढमे कोहस्स पढमसंगहादो दु। कोहस्स य पढमठिदी पत्तो उबट्टगो मोहे ॥ ५११ ॥ कृष्टिवेदकप्रथमे क्रोधस्य प्रथमसंग्रहात् तु । क्रोधस्य च प्रथमस्थितिं प्राप्तः अपवर्तको मोहे ॥ ५११ ॥ अर्थ-कृष्टिवेदककालके प्रथमसमयमें क्रोधकी प्रथम संग्रह कृष्टिसे क्रोधकी प्रथमस्थिति करता है, इसप्रकार मोहका घात करता है ॥ ५११ ॥ पढमस्स संगहस्स य असंखभागा उदेदि कोहस्स । बंधेवि तहा चेव य माणतियाणं तहा बंधे ॥ ५१२॥ प्रथमस्य संग्रहस्य च असंखभागान् उदयति क्रोधस्य । बंधेपि तथा चैव च मानत्रयाणां तथा बंधे ॥ ५१२,॥ अर्थ-कृष्टिवेदकके प्रथमसमयमें क्रोधकी प्रथम संग्रहकृष्टिकी अन्तर कृष्टियोंके असं. ख्यात बहुभाग उदय आते हैं । इसीतरह बन्धमें भी वीचकी असंख्यात बहुभागमात्र कृष्टियां जानना । उसीप्रकार मानादि तीनकी असंख्यात बहुभागमात्र कृष्टियां बन्धतीं हैं ॥ ५१२॥ कोहस्स पढमसंगहकिट्टिस्स य हेट्ठिमणुभयठाणा । तत्तो उदयट्ठाणा उवरिं पुण अणुभयट्ठाणा ॥ ५१३॥ उरि उदयट्ठाणा चत्तारि पदाणि होति अहियकमा । मज्झे उभयठाणा होति असंखेजसंगुणिया ॥ ५१४ ॥ क्रोधस्य प्रथमसंग्रहकृष्टेश्चाधस्तनानुभयस्थानानि । तत उदयस्थानानि उपरि पुनरनुभयस्थानानि ॥ ५१३ ॥ उपरि उदयस्थानानि चत्वारि पदानि भवंति अधिकक्रमाणि । मध्ये उभयस्थानानि भवंति असंख्येयसंगुणितानि ॥ ५१४ ॥ . ..

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