________________
१२४
रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । गुणा कम होता है। पूर्वसमयके उदयसे उत्तरसमयका बन्ध भी और अनन्तरससयवर्ती उदय भी अनन्तगुणा घटता जानना ॥ ४४९ ॥
बंधेण होदि उदओ अहियो उदएण संकमो अहियो। गुणसेढि अणंतगुणा बोधवा होदि अणुभागे ॥ ४५०॥ बंधेन भवति उदयो अधिक उदयेन संक्रमो अधिकः ।
गुणश्रेणिरनंतगुणा बोद्धव्या भवति अनुभागे ॥ ४५० ॥ अर्थ-बन्धसे तो उदय अधिक है और उदयसे संक्रम अधिक है । इसतरह अनुभागमें अनन्तगुणी गुणकारकी पंक्ति जानना । भावार्थ-विवक्षित एक समयमें अनुभागके बन्धसे अनन्तगुणा अनुभागका उदय होता है उससे अनन्तगुणा अनुभागका संक्रम होता है ॥ ४५०॥
गुणसेढि अणंतगुणेणूणा य वेदगो दु अणुभागो। गणणादिकंतसेढी पदेसअंगेण वोधवा ॥ ४५१॥ गुणश्रेणिरनंतगुणेनोना च वेदकस्तु अनुभागः ।
गणनातिक्रांतश्रेणी प्रदेशांगेन बोद्धव्या ॥ ४५१ ॥ - अर्थ-यद्यपि उदयरूप अनुभाग समय समय प्रति अनन्तगुणा घटतारूप गुणकार पति लिये है तौभी प्रदेश अंगकर असंख्यातगुणकारकी पतिरूप जानना । भावार्थसमय २ प्रति अनुभागका उदय अनन्तगुणा घटता है तो भी कर्मपरमाणुओंका उदय समय २ प्रति असंख्यातगुणा वढता है ऐसा जानना ॥ ४५१ ॥
बंधोदएहिं णियमा अणुभागो होदि शंतगुणहीणं । से काले से काले भजो पुण संकमो होदि ॥ ४५२ ॥ बंधोदयाभ्यां नियमादनुभागो भवति अनंतगुणहीनः।
स्खे काले स्खे काले भाज्यः पुनः संक्रमो भवति ॥ ४५२ ॥ ___ अर्थ-अपने कालमें अनुभाग बन्ध और उदयकर समय २ प्रति अनन्तगुणा घटता ही है । और अपने २ कालमें संक्रम भजनीय है यानी घटनेके नियमसे रहित है ॥४५२॥
संकमणं तदवढे जाव दु अणुभागखंडयं पडिदि। अण्णाणुभागखंडे आढ़ते णंतगुणहीणं ॥ ४५३॥ संक्रमणं तदवस्थं यावत्तु अनुभागखंडकं पतति ।
अन्यानुभागखंडे आरब्धे अनंतगुणहीनम् ॥ ४५३ ॥ अर्थ-जिस अनुभागकांडकमें संक्रमण हो उस अनुभागकांडकका घात होकर न निवटे तबतक समय समय प्रति अवस्थित ( समान ) रूप ही अनुभागका संक्रमण होता