Book Title: Labdhisara
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 117
________________ लब्धिसारः। १०१ अर्थ-जघन्य अनुभागकांडकोत्करणकाल सबसे थोड़ा है उससे अधिक उत्कृष्ट अनुभागकांडकोत्करणकाल है । उससे संख्यातगुणा जघन्यस्थितिकांडकोत्करण काल है।३६२॥ पडणजहण्णहिदिबंधद्धा तह अंतरस्स करणद्धा । जेहिदिबंधठिदीउकीरद्धा य अहियकमा ॥ ३६३ ॥ पतनजघन्यस्थितिबंधाद्धा तथा अंतरस्य करणाद्धा । ज्येष्ठस्थितिबंधस्थित्युत्करणाद्धा च अधिकक्रमाः ॥ ३६३ ॥ अर्थ-अवरोहक अनिवृत्तिकरणके प्रथमसमयमें संभव मोहका जघन्यस्थितिबंधापसरण काल विशेष अधिक है । उससे विशेष अधिक अन्तर करनेका काल है, उससे अधिक उत्कृष्टस्थितिबंधकाल है उससे अधिक उत्कृष्ट स्थितिकांडकोत्करणकाल है ॥ ३६३ ॥ सुहमंतिमगुणसेढी उवसंतकसायगस्स गुणसेढी। पडिवदसुहुमद्धावि य तिण्णिवि संखेजगुणिदकमा ॥ ३६४ ॥ सूक्ष्मांतिमगुणश्रेणी उपशांतकषायकस्य गुणश्रेणी । प्रतिपतत्सूक्ष्माद्धापि च तिस्रोपि संख्येयगुणितक्रमाः ॥ ३६४ ॥ अर्थ-उससे संख्यातगुणा आरोहक सूक्ष्मसापरायके अन्तसमयमें संभव ऐसा गलितावशेष गुणश्रेणी आयाम है । उससे संख्यातगुणा उपशांतकषायके प्रथमसमयमें आरंभ किया गुणश्रेणी आयाम है। उससे संख्यातगुणा पड़नेवाला सूक्ष्मसांपरायका काल है ॥ ३६४ ॥ तग्गुणसेढी अहिया चलसुहुमो किट्टिउवसमद्धा य । सुहुमस्स य पढमठिदी तिण्णिवि सरिसा विसेसहिया ॥३६५॥ तद्गुणश्रेणी अधिका चलसूक्ष्मः कृष्ट्युपशमाद्धा च । सूक्ष्मस्य च प्रथमस्थितिः तिस्रोपि सदृशा विशेषाधिकाः ३६५ ॥ अर्थ-उससे पड़नेवाले सूक्ष्मसांपरायके लोभका गुणश्रेणी आयाम आवलिमात्र विशेषकर अधिक है, उससे सूक्ष्मकृष्टि उपशमानेका काल और सूक्ष्मसांपरायकी प्रथमस्थिति आयाम-ये तीनों आपसमें समान हैं तौभी अन्तर्मुहूर्तमात्र विशेषकर अधिक हैं ॥३६५॥ किट्टीकरणद्धहिया पडवादर लोभवेदगद्धा हु। संखगुणं तस्सेय तिलोहगुणसे दिणिक्खेओ ॥ ३६६ ॥ कृष्टिकरणाद्धाधिका पतद्वादरलोभवेदकाद्धा हि । संख्यगुणं तस्यैव त्रिलोभगुणश्रेणिनिक्षेपः ॥ ३६६ ॥ अर्थ-उससे सूक्ष्मकृष्टि करनेका काल विशेष अधिक है १२ । उससे पड़नेवाले

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