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लब्धिसारः। अर्थ-लोभके उदय सहित चढा जीव अपने २ कालमें उदय रहित तीन क्रोध तीन मान तीन मायाओंको क्रमसे उपशमाता है उन क्रोधादिकोंकी प्रथमस्थितीका अभाव है, क्योंकि लोभसहित चढे हुएके क्रोधादिका उदय नहीं पाया जाता ॥ ३५४ ॥
माणोदयचडपडिदो कोहोदयमाणमेत्तमाणुदओ। माणतियाणं सेसे सेससमं कुणदि गुणसेढी ॥ ३५५ ॥
मानोदयचटपतितः क्रोधोदयमानमात्रमानोदयः ।।
मानत्रयाणां शेषे शेषसमं करोति गुणश्रेणी ॥ ३५५॥ अर्थ-मानके उदयसहित श्रेणी चढ पडा जो जीव उसके क्रोध मानका उदयकाल मिलाया हुआ जितना हो उतना मानका उदयकाल है । और मान माया लोभसहित चढकर पड़ा जीव क्रमसे मान माया लोभके द्रव्यको अपकर्षणकर ज्ञानावरणादिकोंकी गुणश्रेणी आयामके समान गलितावशेष आयामकर गुणश्रेणी आयाम करता है ॥ ३५५ ॥
माणादितियाणुदये चडपडिये सगसगुदयसंपत्ते । णव छत्ति कसायाणं गलिदवसेसं करेदि गुणसेढिं ॥ ३५६ ॥ मानादित्रयाणामुदये चटपतिते स्वकस्वकोदयसंप्राप्ते ।
नव षट् त्रिकषायाणां गलितावशेषं करोति गुणश्रेणिम् ॥ ३५६ ॥ अर्थ—मान माया लोभके उदयसहित चढके पड़ा हुआ जीव अपनी २ कषायके उदयको प्राप्त हुए क्रमसे नवकषायोंकी, छहकषायोंकी और तीन कषायोंकी पूर्वोक्त रीतिसे गलितावशेष आयामलिये गुणश्रेणी करता है ॥ ३५६ ॥
जस्सुदएण य चडिदो तम्हि य उक्कट्टियम्हि पडिऊण । अंतरमाऊरेदि हु एवं पुरिसोदए चडिदो ॥ ३५७ ॥ यस्योदयेन च चटितः तस्मिंश्च अपकर्षिते पतित्वा ।
अंतरमापूरयति हि एवं पुरुषोदये चटितः ॥ ३५७ ॥ अर्थ-जिस कषायके उदय सहित चढके पड़ा हो उसी कषायके द्रव्यका अपकर्षण होनेपर अन्तरको पूरता है अर्थात् नष्ट किये निषेकोंका सद्भाव करता है । इसीप्रकार पुरुपवेद सहित क्रोधादि युक्त श्रेणी चढने उतरनेका व्याख्यान जानना ॥ ३५७ ॥
थी उदयस्स य एवं अवगदवेदो हु सत्तकम्मंसे । सममुवसामदि संढस्सुदए चडिदस्स वोच्छामि ॥ ३५८ ॥
स्त्री उदयस्य च एवं अपगतवेदो हि सप्तकर्माशान् शममुपशमयति पंढस्योदये चटितस्य वक्ष्यामि ॥ ३५८ ॥