________________
लब्धिसारः। - सम्यग्द्विचरने चरमे अष्टवर्षस्यादिमे च स्थितिखंडानि ।
अवरवराबाधापि च अष्टवर्ष संख्यातगुणितक्रमाणि ॥ १५५॥ ... " - अर्थ-उससे संख्यातगुणा सम्यक्त्वमोहनीका द्विचरम स्थितिकांडकायाम है १० । उससे संख्यातगुणा सम्यक्त्व मोहनीका अन्तस्थितिकांडका आयाम है ११ । उससे संख्यातगुणा सम्यक्त्वमोहनीका आठवर्षस्थितिका प्रथमस्थितिकांडक आयाम है १२ । उससे संख्यातगुणा कृतकृत्य वेदकके प्रथमसमयमें संभवता जो ज्ञानावरणादि कर्मोंका स्थितिबन्ध उसका जघन्य आबाधाकाल है १३ । उससे संख्यातगुणा अपूर्वकरणके प्रथमसमयमें संभवतां स्थितिबन्धका उत्कृष्ट आबाधा काल है १४ । यहांतक ये सब काल प्रत्येक यथासंभव अन्तर्मुहूर्तमात्र ही जानने । उससे संख्यातगुणी सम्यक्त्वमोहनीकी अवशेष अष्टवर्षप्रमाण स्थिति है ॥ १५५ ॥
मिच्छे खवदे सम्मदुगाणं ताणं च मिच्छसंतहि । पढमंतिमठिदिखंडा असंखगुणिदा हु दुट्टाणे ॥ १५६ ॥ मिथ्ये क्षपिते सम्यद्विकानां तेषां च मिथ्यसत्त्वं हि।
प्रथमांतिमस्थितिखंडान्यसंख्यगुणितानि हि द्विस्थाने ॥ १५६ ॥ अर्थ-उससे असंख्यात गुणा मिथ्यात्वके क्षय करने के समय सम्यक्त्वमोहनीयका अन्तका स्थितिकांडक आयाम है १६ । उससे असंख्यातगुणा मिश्रमोहनीयका अन्तका स्थितिकांडक आयाम है १७ । उससे असंख्यातगुणा मिथ्यात्व क्षयकरनेके समयके वादमें संभवता मिश्रमोहनीय वा सम्यक्त्वमोहनीयका प्रथमस्थितिकांडक आयाम है १८ । उससे असंख्यात गुणा मिथ्यात्वका सत्त्वद्रव्य अन्तकांडक प्रमाण जहां बाकी रहे उस कालमें संभवता मिश्रमोहनी वा सम्यक्त्वमोहनीयका अन्तकांडकका आयाम है ।। १५६॥
मिच्छंतिमठिदिखंडो पल्लासंखेजभागमेत्तेण । हेटिमठिदिप्पमाणेणभिहियो होदि णियमेण ॥ १५७ ॥ मिथ्यांतिम स्थितिखंडं पल्यसंख्येयभागमात्रेण ।।
अधस्तनस्थितिप्रमाणेनाभ्यधिकं भवति नियमेन ॥ १५७ ॥ अर्थ-उससे मिथ्यात्वका सत्त्व जिसकालमें पाया जावे उसमें मिश्रसम्यक्त्व मोहनीके अन्तखंडका घात होनेके वाद शेष रही उन दोनों के नीचेकी स्थिति पत्यके असंख्यातवें भागमात्र उससे अधिक मिथ्यात्वके अन्तकांडकका आयाम है ॥ १५७ ॥
दूरावकिहिपढमं ठिदिखंडं संखसंगुणं तिण्णं ।। दूरावकिटिहेदू ठिदिखंडं संखसंगुणियं ॥ १५८ ॥ दूरापकृष्टिप्रथमं स्थितिखंड संखसंगुणं त्रयं ।। दूरापकृष्टिहेतुः स्थितिखंडः संख्यसंगुणितः ॥ १५८ ॥