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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । उच्छिष्टावलिके एक २ निषेकको निर्जरारूप कर उसके बादके समयमें जीव क्षायकसम्यग्दृष्टी होता है।
विदियकरणादिमादो कदकरिणजस्स पढमसमओत्ति । वोच्छं रसखंडुक्कीरणकालादीणमप्पबहु ॥ १५२ ॥ द्वितीयकरणादिमात् कृतकृत्यस्य प्रथमसमय इति ।
वक्ष्ये रसखंडोत्करणकालादीनामल्पबहुत्वम् ॥ १५२ ॥ अर्थ-दूसरे अपूर्वकरणके प्रथम समयसे लेकर कृतकृत्य वेदकके प्रथम समयतक अनुभागकांडकोत्करणकालादिकोंके अल्पबहुत्वके तेतीसस्थान कहूंगा ॥ १५२ ॥
रसठिदिखंडुक्कीरणअद्धा अवरं वरं च अवरवरं ।
सवत्थो अहियं संखेजगुणं विसेसहियं ॥ १५३॥
. रसस्थितिखंडोत्करणाद्धा अवरं वरं च अवरवरं । .. सर्वस्तोकं अधिक संख्येयगुणं विशेषाधिकम् ॥ १५३ ॥
अर्थ-जघन्य अनुभागखंडोत्करण काल संख्यातआवलिमात्र है तो भी कहे जानेवाले सब स्थानोंसे थोड़ा है, उससे उत्कृष्ट अनुभागखंडोत्करणकाल उसके संख्यातवें भागमात्र• विशेषकर अधिक है, उससे संख्यातगुणा जघन्यस्थितिकांडकोत्करण काल है और उसके संख्यातवें भागमात्र विशेषकर अधिक अपूर्व करणकी आदिमें संभवता ऐसा उत्कृष्ट स्थितिकांडकोत्करण काल है ॥ १५३ ॥
कदकरणसम्मखवणणियट्टिअपुबद्ध संखगुणिदकमं । तत्तो गुणसेढिस्स य णिक्खेओ साहियो होदि ॥ १५४ ॥ कृतकरणसम्यक्षपणनिवृत्त्यपूर्वाद्धा संख्यगुणितक्रमं ।
ततो गुणश्रेण्याश्च निक्षेपः साधिको भवति ॥ १५४ ॥ अर्थ-उससे संख्यातगुणा कृतकृत्यवेदकका काल है ५। उससे संख्यातगुणा अष्ट वर्ष करनेके समयसे लेकर कृतकृत्य वेदकके अन्तसमयतक सम्यक्त्वमोहनीकी क्षपणाका काल है ६। उससे संख्यातगुणा अनिवृत्तिकरणका काल है ७ । उससे संख्यातगुणा अपूर्वकरणका काल है ८ । उससे अनिवृत्तिकरणकाल और इसके संख्यातवें भागमात्र विशेषकर अधिक अपूर्वकरणके पहले समयमें जिसका प्रारंभ हुआ था ऐसा गुणश्रेणी आयाम है ॥ १५४ ॥
सम्मदुचरिमे चरिमे अडवस्सस्सादिमे च ठिदिखंडा। अवरवराबाहावि य अडवस्सं संखगुणियकमा ॥ १५५ ॥