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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्। होता है वह असंख्यातगुणा क्रमलिये द्रव्य उपशमाता है जो समय समय प्रति द्रव्य उपशमाया उसीका नाम उपशमन फालिका द्रव्य जानना ॥ २५०॥ .
संढादिमउवसमगे इस्स उदीरणा य उदओ य । संढादो संकमिदं उवसमियमसंखगुणियकमां ॥ २५१॥
षंढादिमोपशामके इष्टस्योदीरणा च उदयश्च । - पंढात् संक्रमितमुपशमितमसंख्यगुणितक्रमः ॥ २५१ ॥
अर्थ-नपुंसकवेदके उपशमकालके प्रथमसमयमें विवक्षित उपशमरूप पुरुषवेद उसका उदय उदीरणा वह नपुंसकवेदसे संक्रमण करता हुआ असंख्यातगुणा क्रम लिये है॥२५१॥
जत्तोपाये होदि हु ठिदिबंधो संखवस्समेत्तं तु । तत्तो संखगुणूणं बंधोसरणं तु पयडीणं ॥ २५२ ॥
यत उपायेन भवति हि स्थितिबंधः संख्यवर्षमात्रं तु ।
ततः संख्यगुणोनं बंधापसरणं तु प्रकृतीनाम् ॥ २५२ ॥ अर्थ-जिस कारण यहां मोहका स्थितिबन्ध संख्यात हजार वर्षमात्र होता है इसलिये पूर्वस्थितिबन्धापसरणसे यहां स्थितिबन्धापसरण सब प्रकृतियोंका संख्यातगुणा कम होता है ॥ २५२ ॥
वस्साणं बत्तीसादुवरि अंतोमुहुत्तपरिमाणं । ठिदिबंधाणोसरणं अवरद्विदिबंधणं जाव ॥ २५३ ॥ वर्षाणां द्वात्रिंशदुपरि अन्तर्मुहूर्तपरिमाणम् ।
स्थितिबंधानापसरणमवरस्थितिबंधनं यावत् ॥ २५३ ॥ अर्थ-जिसजगह बत्तीसवर्षका स्थितिबन्ध होता है वहांसे लेकर जहां जघन्य स्थितिबन्ध होता है वहांतक उस बन्धापसरणका प्रमाण अन्तर्मुहूर्तमात्र जानना ॥ २५३ ॥
ठिदिबंधाणोसरणं एवं समयप्पबद्धमहिकित्ता । . . उत्तं णाणादो पुण ण च उत्तं अणुववत्तीदो ॥ २५४ ॥
स्थितिबंधानामपसरणमेकं समयप्रबद्धमधिकृत्य ।
उक्तं नानातः पुनः न च उक्तमनुपपत्तितः ॥ २५४ ॥ अर्थ-स्थितिबन्धापसरण विवक्षित स्थितिबन्धके प्रथम समयमें संभव एक समयप्रबद्धको अधिकारकरके कहा गया है और हरसमय स्थितिबन्ध कम होनेकी अप्राप्तिसे नाना समयप्रबद्धकी अपेक्षा नहीं कहा ॥ २५४ ॥
१ इसके आगेका एक गाथा भाषा टीकामें नहीं मिला वह यह है-"अंतरकरणादुवरि ठिदिस्स खंडा. ण मोहणीयस्स । ठिदिबन्धोसरणं पुण संखेजगुणेण हीणकमा" ॥