Book Title: Labdhisara
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 103
________________ लब्धिसारः। ओदरसुहुमादीए बंधो अंतो मुहुत्तबत्तीसं।। अडदालं च मुहुत्ता तिघादिणामदुगवेयणीयाणं ॥ ३१०॥ अवतरसूक्ष्मादिके बंधो अन्तर्मुहूर्त द्वात्रिंशत् । अष्टचत्वारिंशत् च मुहूर्ताः त्रिघातिनामद्विकवेदनीयानाम् ॥ ३१० ॥ अर्थ-उतरे हुए सूक्ष्मसांपरायके प्रथमसमयमें तीन घातियाओंका अन्तर्मुहूर्त, नाम गोत्रका बत्तीसमुहूर्त और वेदनीयका अड़तालीस मुहूर्तमात्र स्थितिबन्ध है ॥३१०॥ आरोहकसे अवरोहक ( उतरनेवाला) का दूना स्थितिबन्ध होता है । गुणसेढीसत्थेदररसबंधो उवसमादु विवरीयं । पढमुदओ किट्टीणमसंखभागा विसेसहियकमा ॥ ३११ ॥ गुणश्रेणी शस्तेतररसबन्ध उपशमात् विपरीतम् । प्रथमोदयः कृष्टीनामसंख्यभागा विशेषाधिकक्रमाः ॥ ३११ ॥ अर्थ-गुणश्रेणी प्रशस्त अप्रशस्त प्रकृतियोंका अनुभागबंधका चढ़नेसे उतरनेमें विपरीतपना है । घटता बढता क्रमलिये है । और कृष्टियोंका प्रथम समयमें पल्यके असंख्यातवें भाग है फिस उसके वाद द्वितीयादि समयोंमें विशेष अधिकका क्रम जानना ॥११॥ इस तरह सूक्ष्मसांपरायका काल वितीत हुआ। बादरपढमे किट्टी मोहस्स य आणुपुविसंकमणं । णहूं ण च उच्छिटे फड्डयलोहं तु वेदयदि ॥ ३१२ ॥ ___ बादरप्रथमे कृष्टिः मोहस्य च आनुपूर्विसंक्रमणम् । नष्टं न च उच्छिष्टं स्पर्धकलोभं तु वेदयति ॥ ३१२ ॥ अर्थ-अवरोहक अनिवृत्तिकरणके प्रथमसमयमें सूक्ष्मकृष्टियां उच्छिष्टावलिमात्र निषेकके विना सभी वरूपसे नष्ट हुई, मोहका आनुपूर्वी संक्रमण भी नष्ट होगया । अब उदयको प्राप्त हुए स्पर्धकरूप बादरलोभको भोगता है ॥ ३१२ ॥ ओदरबादरपढमे लोहस्संतोमुहुत्तियो बंधो। दुदिणंतो घादितिये चउवस्संतो अघादितिये ॥३१३॥ अवतरबादरप्रथमे लोभस्यांतर्मुहूर्तको बंधः । द्विदिनांतो घातित्रिके चतुःवर्षान्तो अघातित्रये ॥ ३१३ ॥ अर्थ-उतरनेवाले बादरसांपराय अनिवृत्तिकरणके पहले समयमें संज्वलनलोभका स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्त है, तीन घातियाओंका कुछकम दो दिन है, नामगोत्रका कुछकम चार दिन और तीन अघातियाओंका संख्यातहजार वर्ष है ॥ ३१३ ॥

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