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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् ।
ट्ठा सीसे उभयं दविसेसे य कट्टिम्म । मज्झिमखंडे दत्रं विभज्ज बिदियादिसमयेसु ॥ २८३ ॥ अधस्तना शीर्षे उभयं द्रव्यविशेषे च अधस्तनकृष्टौ ।
मध्यमखंडे द्रव्यं विभज्य द्वितीयादिसमयेषु ॥ २८३ ॥
अर्थ - कृष्टिकरणकालके दूसरे आदि समयोंमें अपकर्षण किये द्रव्यको अधस्तनशीर्ष - विशेषों में उभयद्रव्यविशेषोंमें अधस्तनकृष्टियों में मध्यमखंडोंमें - इसतरह चार विभागों में निक्षेपण करता है ॥ २८३ ॥
ट्ठासीसं थोवं उभयविसेसं तदो असंखगुणं ।
ट्ठा अनंतगुणिदं मज्झिमखंडं असंखगुणं ॥ २८४ ॥ अधस्त शीर्ष स्तोकं उभयविशेषं ततोऽसंख्यगुणम् । अधस्तनमनंतगुणितं मध्यमखंडं असंख्यगुणम् ॥ २८४ ॥
अर्थ - इन पूर्वकथित चारों द्रव्योंमेंसे अधस्तन शीर्षविशेषद्रव्य सबसे थोड़ा है उससे असंख्यातगुणा उभयद्रव्यविशेष है उससे अनन्तगुणी अधस्तन कृष्टि है और उससे भी असं - ख्यातगुणा मध्यमखण्ड द्रव्य है ॥ २८४ ॥
अवरे बहुगं देदि हु विसेसहीणकमेण चरिमोत्ति । तत्तो तगुणूणं विसेसहीणं तु फट्टयमे ॥ २८५ ॥
अवरस्मिन् बहुकं ददाति हि विशेषहीनक्रमेण चरम इति । ततोऽनंतगुणनं विशेषहीनं तु स्पर्धके ॥ २८५ ॥
अर्थ – जघन्य कृष्टिमें बहुत द्रव्य दिया जाता है । द्वितीय अपूर्व कृष्टिसे लेकर पूर्व - कृष्टिकी अन्तकृष्टि पर्यंत चय घटता क्रम लिये निक्षेपण करता है । उससे पूर्वस्पर्धक की प्रथमवर्गणा में निक्षेपण किया द्रव्य अनन्तगुणा घटता हुआ है और उसके वाद चय घटते क्रमसे निक्षेपण करता है ॥ २८५ ॥
वरि असंखाणंतिमभागूणं पुत्रकिट्टिसंधी | हेमिखंडपमाणेणेव विसेसेण हीणादो ॥ २८६ ॥ नवरि असंख्यानामंतिमभागोनं पूर्वकृष्टिसंधिषु । अधस्तनखंडप्रमाणेनैव विशेषेण हीनात् ॥ २८६ ॥
अर्थ — इतना विशेष है कि अपूर्वकृष्टिकी अन्तकृष्टिमें निक्षेपण किये द्रव्यसे पूर्वकृष्टिकी प्रथमकृष्टिमें निक्षेपण किया द्रव्य असंख्यातवें भागकर व अनन्तवें भागकर घटता हुआ है । क्योंकि एक अधस्तन कृष्टिका द्रव्य और एक उभयद्रव्यविशेष इनकर हींन है ॥ २८६ ॥
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