Book Title: Labdhisara
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्। अर्थ-उससे असंख्यातगुणा दर्शनमोहत्रिककी दूरापकृष्टि नामा स्थितिमें प्राप्त हुआ ऐसा पल्यका असंख्यातवां बहुभागमात्र स्थितिकांडक आयाम है २१ । उससे संख्यातगुणा दूरापकृष्टिस्थितिका कारण ऐसा पल्यका असंख्यात बहुभागमात्र स्थितिकांडक आयाम है ॥ १५८॥
पलिदोवमसंतादो विदियो पल्लस्स हेदुगो जो दु । अवरो अपुवपढमे ठिदिखंडो संखगुणिदकमा ॥ १५९ ॥ पलितोपमसत्त्वतो द्वितीयं पल्यस्य हेतुकं यत्तु ।
अवरमपूर्वप्रथमे स्थितिखंडं संख्यगुणितक्रमं ॥ १५९ ॥ अर्थ-उससे संख्यातगुणा पल्यमात्र शेषस्थिति होनेपर पाया जावे ऐसा द्वितीयस्थितिकांडकका आयाम है २३ । उससे संख्यातगुणा पल्यमात्र स्थितिको कारण ऐसा पल्यका संख्यातवां भागमात्र स्थितिकांडक आयाम है २४ । उससे संख्यातगुणा अपूर्वकरणके प्रथमसमयमें जिसका प्रारंभ हुआ ऐसा जघन्य स्थितिकांडकका आयाम है ॥ १५९ ॥
पलिदोवमसंतादो पढमो ठिदिखंडओ दु संखगुणो। पलिदोवमठिदिसंतं होदि विसेसाहियं तत्तो ॥ १६० ॥ पल्योपमसत्त्वतः प्रथमं स्थितिखंडकं तु संख्यगुणं ।
पल्योपमस्थितिसत्त्वं भवति विशेषाधिकं ततः ॥ १६० ॥ अर्थ-उससे संख्यातगुणा पल्यमात्र अवशेष स्थितिमें प्राप्त ऐसा पल्यका संख्यात बहुभागमात्र प्रथमकांडकका आयाम है २६ । उससे पल्यका संख्यातवां भागमात्र विशेषकर अधिक पल्यमात्र स्थितिसत्त्व है ॥ १६० ॥
बिदियकरणस्स पढमे ठिदिखंडविसेसयं तु तदियस्स । करणस्स पढमसमये दंसणमोहस्स ठिदिसंतं ॥ १६१ ॥ दंसणमोहूणाणं बंधो संतो य अवर वरगो य। संखये गुणयकमा तेत्तीसा एत्थ पदसंखा ॥ १६२॥ द्वितीयकरणस्य प्रथमे स्थितिखंडविशेषकं तु तृतीयस्य । करणस्य प्रथमसमये दर्शनमोहस्य स्थितिसत्त्वम् ।। १६१ ॥ दर्शनमोहोनानां बंधः सत्त्वं च अवरं वरकं च ।
संख्येयगुणितक्रमं त्रायस्त्रिंशदत्र पदसंख्या ॥ १६२ ॥ अर्थ-उससे संख्यातगुणा अपूर्वकरणके प्रथमसमयमें जघन्य और उत्कृष्टकांडकोंमें बीचके विशेषका प्रमाण पत्यका संख्यातवें भागकर हीन पृथक्त्व सागर प्रमाण है २८ । उससे संख्यातगुणा अनिवृत्तिकरणके प्रथम समयमें संभवता दर्शनमोहका स्थितिसत्त्व है

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