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लब्धिसारः ।
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यस्थिति में भी निक्षेपण होता है । यहांपर सातवें गुणस्थानमें दर्शनमोहका बन्भ है ही नहीं इसलिये द्वितीय स्थिति निक्षेपण नहीं करता ॥ २०९ ॥
विदियट्ठिदिस्स दवं उक्कट्टिय देदि सम्मपढमम्मि । बिदियट्ठिदिहि तस्स अणुक्कीरिजंतमाणम्हि ॥ २९० ॥ द्वितीयस्थितेर्द्रव्यमपकर्ण्य ददाति सम्यक्त्वप्रथमे । द्वितीयस्थितौ तस्यानुत्कीर्यमाणे ।। २१० ॥
अर्थ — द्वितीयस्थितिका अपकर्षण क्रिया द्रव्य सम्यक्त्वमोहनी के प्रथमस्थितिरूपगुणश्रेणी आयाममें निक्षेपण करता है । और उसके अपकर्षण किये द्रव्यको द्वितीयस्थिति में निक्षेपण करता है | २१० ॥
सम्मत्तपयडिपढमट्ठिदीसु सरिसाण मिच्छमिस्साणं ।
ठिदिदवं सम्मस्स य सरिसणिसेयम्हि संकमदि ॥ २१९ ॥ सम्यक्त्वप्रकृतिप्रथमस्थितिषु सदृशानां मिध्यमिश्राणाम् ।
स्थितिद्रव्यं सम्यस्य च सदृशनिषेके संक्रामति ।। २११ ॥
अर्थ — मिथ्यात्व और मिश्रमोहनीकी प्रथमस्थितिके ऊपर जो अन्तरायामके निषेक सम्यक्त्वमोहनीकी प्रथमस्थितिके समानपर्यंत पाये जाते हैं उनके द्रव्यको अपने २ समानवर्ती सम्यक्त्वमोहनीयके निषेकों में निक्षेपण करता है। वहां द्रव्य देनेका विधान नहीं है ॥२११॥ . जायं तरस्स दुचरिमफालिं पावे इमो कमो ताव | चरिमतिदंसणदवं छुहेदि सम्मस्स पढमम्हि ॥ २१२ ॥
यावदंतरस्य द्विचरमफालिं प्राप्ते अयं क्रमस्तावत् ।
चरमत्रिदर्शनद्रव्यं क्षेपयति सम्यस्य प्रथमे ॥ २१२ ॥
अर्थ-- जबतक अन्तरकरणकाल के द्विचरमसमयवर्ती अन्तकी द्विचरमफालि प्राप्त हो वहांतक फालिद्रव्य और अपकृष्टद्रव्यके निक्षेपण करनेका यह पूर्वोक्त क्रम जानना । और अन्तरकरणकालके अन्तसमय के दर्शनमोहन्त्रिककी अन्तफालिका द्रव्य और अपकृष्ट सब सम्यक्त्वमोहनीकी प्रथमस्थितिमें ही निक्षेपण किया जाता है ॥ २१२ ॥
विदियट्टिदिस्स दवं पढमट्ठिदिमेदि जाव आवलिया । पंडिआवलिया चिट्ठदि सम्मत्तादिमठिदी ताव ॥ २१३ ॥
द्वितीयस्थितेर्द्रव्यं प्रथमस्थितिमेति यावदाबलिका । प्रत्यावलिका तिष्ठति सम्यक्त्वादिमस्थितिः तावत् ॥ २१३ ॥