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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् द्रव्य उदयावलिमें प्राप्त होवे उस समयसे लेकर आगेके समयोंमें उदयावलिमें द्रव्य देनेके लिये भागहार पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण ही जानना । वह पूर्ववत् असंख्यातलोकमात्र जानना ॥१२३ ॥
मिच्छुच्छिहादुवरि पल्लासंखेजभागगे खंडे । संखेजे समतीदे मिस्सुच्छि8 हवे णियमा ॥ १२४ ॥ मिथ्योच्छिष्टादुपरि पल्यासंख्येयभागगे खंडे ।
संख्येये समतीते मिश्रोच्छिष्टं भवेत् नियमात् ॥ १२४ ॥ अर्थ-मिथ्यात्वकी उच्छिष्टावलिमात्र स्थिति बाकी रहनेके समयसे लेकर मिश्रमोहनीकी स्थितिमें पल्यके असंख्यातका भाग देनेपर बहुभागमात्र आयामलिये ऐसे संख्यात हजार स्थितिखण्ड वीत जानेपर अन्तमें मिश्रमोहनीयके निषेक ( उदय होके निर्जरा होनेवाले परमाणु ) उच्छिष्टावलिमात्र नियमसे बाकी रहते हैं ॥ १२४ ॥
मिस्सुच्छि? समये पल्लासंखेजभागगे खंडे। चरिमे पडिदे चेट्टदि सम्मस्सडवस्सठिदिसंतो ॥१२५ ॥ मिश्रोच्छिष्टे समये पल्यासंख्येयभागगे खंडे ।
चरमे पतिते चेष्टते सम्यक्त्वस्याष्टवर्षस्थितिसत्त्वम् ॥ १२५ ॥ अर्थ-जिस समय मिश्रमोहनीकी उच्छिष्टावलिमात्र स्थिति बाकी रहती है उसी समयमें सम्यक्त्वमोहनीकी स्थितिमें पल्यके असंख्यातवेंका भाग देनेपर बहुभागमात्र आयामलिये ऐसे संख्यात हजार स्थितिखण्ड वीत जानेपर उस सम्यक्त्वमोहनीका आठवर्ष प्रमाण स्थितिसत्त्व बाकी रहता है । भावार्थ-मिश्रमोहनीकी उच्छिष्टावलिमात्र स्थिति रहनेका और सम्यक्त्वमोहनीकी आठ वर्ष स्थिति रहनेका यह एक ही काल है ॥१२५॥
मिच्छस्स चरमफालिं मिस्से मिस्सस्स चरिमफालिं तु। संछुहदि हु सम्मत्ते ताहे तेसिं च वरदवं ॥ १२६ ॥ मिथ्यस्य चरमफालिं मिश्रे मिश्रस्य चरमफालिं तु।
संक्रामति हि सम्यक्त्वे तस्मिन् तेषां च वरद्रव्यम् ॥ १२६ ॥ अर्थ-मिथ्यात्व प्रकृति के अन्तकांडककी अन्तफालि जिस समय मिश्रमोहनीमें संक्रमण होती है उससमय मिश्रमोहनीका द्रव्य उत्कृष्ट होता है और मिश्रमोहनीके अन्तकांडककी अन्तफालिका द्रव्य जिससमय सम्यक्त्व मोहनीमें संक्रमण करता है उससमय सम्पक्त्व मोहनीका द्रव्य उत्कृष्ट होता है ॥ १२६ ॥
जदि होदि गुणिदकम्मो दबमणुकस्समण्णहा तेसिं । अवरि ठिदिमिच्छदुगे उच्छित्ते समयदुगसेसे ॥ १२७ ॥ .